WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Swarnakarshan Bhairav Stotram Lyrics in Sanskrit & Hindi: The Ultimate Hymn to Attract Wealth & Gold | श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् (PDF): संपूर्ण पाठ, हिंदी अर्थ और लाभ

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् (PDF): संपूर्ण पाठ, हिंदी अर्थ और लाभ Swarnakarshan Bhairav Stotram Lyrics in Sanskrit & Hindi: The Ultimate Hymn to Attract Wealth & Gold Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram के रचियता महर्षि मार्कण्डेय जी में की हैं। श्री स्वर्णाकर्षण भैरव के लाल रंग और लाल रंग के वस्त्र धारण किये हुए हैं इनके सर पर चाँद है और चार हाथ हैं। श्री स्वर्णाकर्षण भैरव के पूजन से धन और विभिन्न सिद्धियों पाई जा सकती हैं। जिन भी व्यक्ति की कुंडली में धन भाव ख़राब हो या धन भाव में शत्रु ग्रह हो या धन सबंधित परेशानी रहती हो तो श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र का पाठ करने और 41 दिन की साधना करने से इन्हें धन की समस्या नही रहती हैं।

इस बात का प्रमाण आपको “रूद्र यामल तन्त्र” में शिव जी ने नन्दी जी से किया हैं। हमारे हिन्दू पुराणों के अनुसार स्वर्णाकर्षण भैरव पाताल के निवासी हैं। और इनकी उपासना का समय रात्रि 12 बजे से 3 बजे तक है ! इनके उपासकों का कहना है कि इनकी उपस्थिति का अनुमान गंध के माध्यम से किया जाता है ! इसी कारण श्वान को इनकी सवारी बताया गया है जो गंध सूंघने में माहिर होता है। Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के दुःखों को दूर व वित्तीय समस्याओं को दूर किया जा सकता हैं। श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र के बारे में बताने जा रहे हैं।

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् (Lyrics): धन प्राप्ति और कर्ज मुक्ति का अचूक उपाय | Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram PDF Download: For Wealth, Abundance

हमारी वेबसाइट FreeUpay.in (फ्री उपाय.इन) में रोजाना आने वाले व्रत त्यौहार की जानकारी के अलावा मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, साधना, व्रत कथा, ज्योतिष उपाय, लाल किताब उपाय, स्तोत्र आदि महत्वपूर्ण जानकारी उबलब्ध करवाई जाएगी सभी जानकारी का अपडेट पाने के लिए दिए गये हमारे WhatsApp Group Link (व्हात्सप्प ग्रुप लिंक) क्लिक करके Join (ज्वाइन) कर सकते हैं।

हर समस्या का फ्री उपाय (Free Upay) जानने के लिए हमारे WhatsApp Channel (व्हात्सप्प चैनल) से जुड़ें: यहां क्लिक करें (Click Here)

Swarnakarshan Bhairav Stotram PDF Download & Lyrics
Swarnakarshan Bhairav Stotram PDF Download & Lyrics

दरिद्रता का नाश करने वाला स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र (संपूर्ण पाठ) | Swarnakarshan Bhairav Stotram Lyrics Benefits for Dhan Prapti & Karz Mukti

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र (Lyrics) | Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram PDF Download (For Wealth & Prosperity)

।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !

पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।

तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।

तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।

इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !

स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।

सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।

दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।

अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।

महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।

महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।

न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।

शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।

महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।

निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।

स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।

श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः-

मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।

दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।

भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।

स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।

।। स्तोत्र-पाठ ।।

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,

नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।

रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।

नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।

नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।

नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।

नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।

अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।

अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।

नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।

श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।

दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।

नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।

अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।

नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।

नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।

नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।

नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।

नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।

गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।

नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।

नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।

दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।

सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।

रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।

नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।

नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।

उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।

नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।

नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।

नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।

धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।

नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।

नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।

नमः सुवर्ण-वर्णा य, महा-पुण्याय ते नमः ।।

नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।

नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।

नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।

नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।

नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।

नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।

द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।

नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।

पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।

नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।

नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।

स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।

नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।

नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।

नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।

चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।

कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।

भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।

नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।

स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !

पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !

श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।

प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।

।। फल-श्रुति ।।

श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।

मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।

यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।

लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।

चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।

स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।

संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।

स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।

सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।

लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।

न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।

म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।

अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।

अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।

दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।

य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।

महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

मूल-मन्त्र ( shri swarnakarshan bhairav mantra ): “ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय श्रीं महा-भैरवाय नमः” ।

वैदिक उपाय और 30 साल फलादेश के साथ जन्म कुंडली बनवाए केवल 500/- रूपये में: पूरी जानकारी यहां पढ़े

10 वर्ष के उपाय के साथ अपनी लाल किताब की जन्मपत्री बनवाए केवल 500/- रूपये में: पूरी जानकारी यहां पढ़े

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Leave a Comment

Call Us Now
WhatsApp
We use cookies in order to give you the best possible experience on our website. By continuing to use this site, you agree to our use of cookies.
Accept