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Bhairava Ashtakam Lyrics in Sanskrit & Hindi | श्री भैरव अष्टकम् (PDF): संपूर्ण पाठ, हिंदी अर्थ और लाभ

श्री भैरव अष्टकम् (PDF): संपूर्ण पाठ, हिंदी अर्थ और लाभ Bhairava Ashtakam Lyrics in Sanskrit & Hindi धार्मिक शास्त्रों के अनुसार Shri Bhairava Ashtakam अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। भैरव अष्‍टमी, भैरव जयंती और प्रति रविवार या बुधवार के दिन इसका पाठ करने से मनुष्य की हर आपदा और समस्या दूर होने लग जाती हैं और लाभ मिलने लगते हैं। श्री भैरव अष्टक श्री गार्ग्यमुनि द्वारा रचियत हैं। Shri Bhairava Ashtakam श्री भैरव जी को समर्पित हैं।

श्री भैरवाष्टकम् | Powerful Bhairava Ashtakam for Protection, Fear & Obstacles

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Bhairava Ashtakam PDF Download & Lyrics
Bhairava Ashtakam PDF Download & Lyrics

भैरव अष्टकम् 2025: हर भय और संकट का होगा नाश | Shri Bhairava Ashtakam PDF Download in Hindi, Meaning & Benefits

श्री भैरवाष्टक (Lyrics) | Shri Bhairava Ashtakam PDF Download in Hindi, Sanskrit

॥ श्रीभैरवाय नमः ॥

सकलकलुषहारी धूर्तदुष्टान्तकारी, सुचिरचरितचारी मुण्डमौञ्जीप्रचारी ।

करकलितकपाली कुण्डली दण्डपाणिः, स भवतु सुखकारी भैरवो भावहारी ॥ १॥

विविधरासविलासविलासितं नववधूरवधूतपराक्रमम् ।

मदविधूणितगोष्पदगोष्पदं भवपदं सततं सततं स्मरे ॥ २॥

अमलकमलनेत्रं चारुचन्द्रावतंसं, सकलगुणगरिष्ठं कामिनीकामरूपम् ।

परिहृतपरितापं डाकिनीनाशहेतुं, भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ३॥

सबलबलविघातं क्षेत्रपालैकपालं, विकटकटिकरालं ह्यट्टहासं विशालम् ।

करगतकरवालं नागयज्ञोपवीतं, भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ४॥

भवभयपरिहारं योगिनीत्रासकारं, सकलसुरगणेशं चारुचन्द्रार्कनेत्रम् ।

मुकुटरुचिरभालं मुक्तमालं विशालं, भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ ५॥

चतुर्भुजं शङ्खगदाधरायुधं, पीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम् ।

श्रीवत्सलक्ष्मीं गलशोभिकौस्तुभं, शीलप्रदं शङ्कररक्षणं भजे ॥ ६॥

लोकाभिरामं भुवनाभिरामं, प्रियाभिरामं यशसाभिरामम् ।

कीर्त्याभिरामं तपसाऽभिरामं, तं भूतनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ७॥

आद्यं ब्रह्मसनातनं शुचिपरं सिद्धिप्रदं कामदं, सेव्यं भक्तिसमन्वितं हरिहरैः सहं साधुभिः ।

योग्यं योगविचारितं युगधरं योग्याननं योगिनं, वन्देऽहं सकलं कलङ्करहितं सत्सेवितं भैरवम् ॥ ८॥

॥ फलश्रुतिः ॥

भैरवाष्टकमिदं पुण्यं प्रातःकाले पठेन्नरः ।

दुःस्वप्ननाशनं तस्य वाञ्छितर्थफलं भवेत् ॥ ९॥

राजद्वारे विवादे च सङ्ग्रामे सङ्कटेत्तथा ।

राज्ञाक्रुद्धेन चाऽऽज्ञप्ते शत्रुबन्धगतेतथा दारिद्रश्चदुःखनाशाय पठितव्यं समाहितैः ।

न तेषां जायते किञ्चिद दुर्लभं भुवि वाञ्छितम् ॥१०॥

॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराणे पञ्चमेऽवन्तीखण्डे अवन्तीक्षेत्रमाहात्म्याऽऽन्तर्गते श्रीभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

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