देवउठनी एकादशी 2025: संपूर्ण व्रत कथा और महत्व Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha in Hindi PDF देव उठनी एकादशी व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है. इस दिन भगवान श्री केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन किया जाता है. इस एकादशी के दिन नैवेद्ध तथा आरती कर प्रसाद वितरित करके ब्राह्माणों को खिलाया जाता है. और दक्षिणा भी बांटी जाती है. कार्तिक माह में जो मनुष्य प्रभु की कथा को थोड़ा-बहुत पढ़ते हैं या सुनते हैं, उन्हें सो गायों के दान के फल की प्राप्ति होती हैं।
देवउठनी एकादशी: व्रत कथा (संपूर्ण) – सरल हिन्दी | Prabodhini / Dev Uthani Ekadashi 2025 Vrat Katha | November 02 Sunday | Complete Story & Significance
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Dev Uthani Ekadashi 2025: Vrat Katha, Puja Vidhi & Tulsi Vivah Details | देवउठनी एकादशी व्रत कथा 2025: सभी पापों से मुक्ति दिलाती है देवउठनी एकादशी की यह कथा (2025)
Prabodhini / Dev Uthani Ekadashi Katha Lyrics & PDF Download: इस कथा के बिना अधूरा है देवउठनी एकादशी का व्रत, जानें पूरी कहानी
Prabodhini / Dev Uthani Ekadashi 2025 Date: देवउठनी एकादशी व्रत कब हैं? 2025
➤ इस वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी व्रत को अक्टूबर महीने की 02 तारीख़, वार रविवार के दिन मनाई जायेगी।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा PDF डाउनलोड | Prabodhini / Dev Uthani Gyaras Ki Katha in Hindi PDF Download | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाने के बाद से प्रारम्भ हुए चातुर्मास का समापन तक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान-उत्सव होने पर होता है। इस दिन वैष्णव ही नहीं, स्मार्त श्रद्धालु भी बडी आस्था के साथ व्रत करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा: ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें।’ Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! अब पापों को हरने वाली पुण्य और मुक्ति देने वाली एकादशी का माहात्म्य सुनिए। पृथ्वी पर गंगा की महत्ता और समुद्रों तथा तीर्थों का प्रभाव तभी तक है जब तक कि कार्तिक की देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि नहीं आती। मनुष्य को जो फल एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों से मिलता है वही प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है। नारदजी कहने लगे कि हे पिता! एक समय भोजन करने, रात्रि को भोजन करने तथा सारे दिन उपवास करने से क्या फल मिलता है सो विस्तार से बताइए।
ब्रह्माजी बोले- हे पुत्र। एक बार भोजन करने से एक जन्म और रात्रि को भोजन करने से दो जन्म तथा पूरा दिन उपवास करने से सात जन्मों के पाप नाश होते हैं। जो वस्तु त्रिलोकी में न मिल सके और दिखे भी नहीं वह हरि प्रबोधिनी एकादशी से प्राप्त हो सकती है। मेरु और मंदराचल के समान भारी पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा अनेक जन्म में किए हुए पाप समूह क्षणभर में भस्म हो जाते हैं। Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
जैसे रुई के बड़े ढेर को अग्नि की छोटी-सी चिंगारी पलभर में भस्म कर देती है। विधिपूर्वक थोड़ा-सा पुण्य कर्म बहुत फल देता है परंतु विधि रहित अधिक किया जाए तो भी उसका फल कुछ नहीं मिलता। संध्या न करने वाले, नास्तिक, वेद निंदक, धर्मशास्त्र को दूषित करने वाले, पापकर्मों में सदैव रत रहने वाले, धोखा देने वाले ब्राह्मण और शूद्र, परस्त्री गमन करने वाले तथा ब्राह्मणी से भोग करने वाले ये सब चांडाल के समान हैं। जो विधवा अथवा सधवा ब्राह्मणी से भोग करते हैं, वे अपने कुल को नष्ट कर देते हैं।
परस्त्री गामी के संतान नहीं होती और उसके पूर्व जन्म के संचित सब अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं। जो गुरु और ब्राह्मणों से अहंकारयुक्त बात करता है वह भी धन और संतान से हीन होता है। भ्रष्टाचार करने वाला, चांडाली से भोग करने वाला, दुष्ट की सेवा करने वाला और जो नीच मनुष्य की सेवा करते हैं या संगति करते हैं, ये सब पाप हरि प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं। Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करने का संकल्प मात्र करते हैं उनके सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो इस दिन रात्रि जागरण करते हैं उनकी आने वाली दस हजार पीढि़याँ स्वर्ग को जाती हैं। नरक के दु:खों से छूटकर प्रसन्नता के साथ सुसज्जित होकर वे विष्णुलोक को जाते हैं। ब्रह्महत्यादि महान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। जो फल समस्त तीर्थों में स्नान करने, गौ, स्वर्ण और भूमि का दान करने से होता है, वही फल इस एकादशी की रात्रि को जागरण से मिलता है।
हे मुनिशार्दूल। इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सफल है जिसने हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत किया है। वही ज्ञानी तपस्वी और जितेंद्रीय है तथा उसी को भोग एवं मोक्ष मिलता है जिसने इस एकादशी का व्रत किया है। वह विष्णु को अत्यंत प्रिय, मोक्ष के द्वार को बताने वाली और उसके तत्व का ज्ञान देने वाली है। मन, कर्म, वचन तीनों प्रकार के पाप इस रात्रि को जागरण से नष्ट हो जाते हैं। Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
इस दिन जो मनुष्य भगवान की प्रसन्नता के लिए स्नान, दान, तप और यज्ञादि करते हैं, वे अक्षय पुण्य को प्राप्त होते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत करने से मनुष्य के बाल, यौवन और वृद्धावस्था में किए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन रात्रि जागरण का फल चंद्र, सूर्य ग्रहण के समय स्नान करने से हजार गुना अधिक होता है। अन्य कोई पुण्य इसके आगे व्यर्थ हैं। जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते उनके अन्य पुण्य भी व्यर्थ ही हैं।
अत: हे नारद ! तुम्हें भी विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जो कार्तिक मास में धर्मपारायण होकर अन्न नहीं खाते उन्हें चांद्रायण व्रत का फल प्राप्त होता है। इस मास में भगवान दानादि से जितने प्रसन्न नहीं होते जितने शास्त्रों में लिखी कथाओं के सुनने से होते हैं। कार्तिक मास में जो भगवान विष्णु की कथा का एक या आधा श्लोक भी पढ़ते, सुनने या सुनाते हैं उनको भी एक सौ गायों के दान के बराबर फल मिलता है। अत: अन्य सब कर्मों को छोड़कर कार्तिक मास में मेरे सन्मुख बैठकर कथा पढ़नी या सुननी चाहिए । Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
जो कल्याण के लिए इस मास में हरि कथा कहते हैं वे सारे कुटुम्ब का क्षण मात्र में उद्धार कर देते हैं। शास्त्रों की कथा कहने-सुनने से दस हजार यज्ञों का फल मिलता है। जो नियमपूर्वक हरिकथा सुनते हैं वे एक हजार गोदान का फल पाते हैं। विष्णु के जागने के समय जो भगवान की कथा सुनते हैं वे सातों द्वीपों समेत पृथ्वी के दान करने का फल पाते हैं। कथा सुनकर वाचक को जो मनुष्य सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं उनको सनातन लोक मिलता है। Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
संपूर्ण देव उठनी एकादशी व्रत कथा और माहात्म्य | Dev Uthani Ekadashi Story and Significance 2025
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देव उठनी एकादशी है. इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है।

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