Dubdi Saptami Vrat Katha in Hindi & PDF: दुबड़ी सप्तमी व्रत कथा 2025: जानें पौराणिक कथा और महत्व हम यहां आपको दुबड़ी सप्तमी कब मनाई जाती हैं, और दुबड़ी सप्तमी मनाने के पीछे की व्रत कथा के बारे में यहां बताने जा रहे हैं नीचे बताई जा रही दुबड़ी सप्तमी व्रत कथा का पाठ आपको दुबड़ी सप्तमी के दिन करना चाहिए इससे श्री गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
Dubdi Saptami Vrat 2025 Kab Hai: दुबड़ी सप्तमी व्रत कब हैं? 2025
दुबड़ी सप्तमी व्रत भाद्रपद मास (भादों) की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन की जाती हैं। इस साल 2025 में यह 30 अगस्त, वार शनिवार के दिन मनाई जाएगी।
संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए दुबड़ी सप्तमी व्रत कथा – The Original Dubdi Saptami Vrat Katha PDF in Hindi & English
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दुबड़ी आठें की कथा एक साहुकार था। उसके सात बेटे थे। बेटों के विवाह के फेरों के पूरा होने से पहले ही बेटे मर जाते थे। इस प्रकार 6 बेटे मर गए। डरते-डरते सातवे बेटे का विवाह मांडा । सब बहिन बेटियों को बुलाया। सबसे बड़ी बुआ पीहर आते समय मार्ग में एक कुम्हार के यहाँ रुकी। उसका मन बुझा हुआ था कोई ख़ुशी नहीं थी। कुम्हार ढाकणी घड़ रहा था। बुआ ने पूछा तू क्या कर रहा है? वह बोला कि गांव के साहूकार के बेटे का विवाह है उसीके लिए ढाकणी घड़ रहा हूँ। पर उसका बेटा मर जाएगा। बुआ ने पूछा कि बेटा नहीं मरे इसका कोई उपाय नहीं है? Dubdi Saptami Vrat Katha
कुम्हार ने बताया की यदि बींद की कोई बुआ दुबड़ी सात का व्रत करे, ठंडा खाए, काँटा फाँसे, बींद के सारे नेग उलटे कर गालियां देती रहे, फेरे के समय कच्चा दूध और तांत का फंदा लेकर बैठ जाए, आधे फेरे होने के बाद एक सांप बींद को डसने आएगा, तब उसके सामने कच्चे दूध का करवा रखदे, जब सांप दूध पीने लगे तो उसे तांत के फंदे में फंसा ले, जब सर्पिणी उसे छुड़ाने के लिए आए, तब बुआ उससे वचन ले कि तू मेरे सब भतीजों को जिन्दा कर उनको बहुएं दे तो ही मैं तेरे पति सांप को छोडूंगी।
सारी बात सुनकर बुआ वहां से रवाना होकर पीहर में अपने घर में गालियां देती हुई घुसी। सब उसके इस व्यवहार से अचम्भित रह गए। पर कोई कुछ नहीं बोला आखिर भुआ जो ठहरी। सारे नेग उलटे करती गई, घर की अन्य औरतें कुछ बोलती तो भी ध्यान नहीं देती। जिद करके बारात भी पिछले दरवाजे से निकलवाई। उसी समय सामने का द्वार टूट कर गिर गया। सब उसकी प्रशंषा करने लगे, अब तो जैसा वह कह रही थी वैसे ही सब मान रहे थे। फिर जिद करके बरात में शामिल हो गई।
साहूकार फिर भी नाराज ही था। उसने कहा, “ये जायेगी तो मैं नहीं जाऊंगा वैसे भी मैं जाता हूँ तो मेरे बेटे मर जाते हैं।” वो नहीं गया। बरात को रास्ते में बरगद के पेड़ की छाया में से निकालने लगे तो गालियां देते हुए उसने बारात को धूप में से ही निकालने की जिद की। उसकी जिद के चलते जब बारात को धूप में से निकालने लगे तभी एक बहुत बड़ी डाल टूट कर गिर गई।
सब फिर से बुआजी की प्रशंषा करने लगे। फिर दूल्हे को बुआ की जिद के कारण दुल्हन के घर के पिछले द्वार से अंदर ले जाने लगे, तभी आगे का दरवाजा टूट कर गिर गया। फिर वह गालियां देती हुई फेरे में भी बैठ गई। जब सांप आया तो उसने उसे फंदे में फंसा लिया।
जब सर्पिणी उसे छुड़ाने आई तो बुआ बोली, ” हे सर्पिणी , मैं तेरे पति को तभी छोडूंगी जब तु मेरे सारे भतीजों को जीवित कर देगी उनको बहुएं भी दे देगी। तू मुझे वचन दे। “सर्पिणी बोली, मैं तुझे वचन देती हूँ ऐसा ही होगा।” बुआने सांप को छोड़ दिया। धूम धाम से विवाह संपन्न हुआ। सब भुआजी से खुश हो गए। जब बरात लौटने लगी तो रास्ते में दुबड़ी सात एक वृद्धा के रूप में मिली। उसने भी दुबड़ी सात की पूजा और व्रत करने के लिए कहा। बुआ ने कहा, “मैं दुबड़ी सात की पूजा कराना चाहती हूँ व्रत कराऊंगी पर कैसे कराऊं, समझ में नहीं आ रहा है। Dubdi Saptami Vrat Katha
“वृद्धा मुस्कुराती हुई वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद पूजा के बारे में सोचती हुई जब बुआ गाड़ी में से उतरी तो देखा कि वहां दुबड़ी सात का पाटिया मंडा हुआ रखा था। पूजन सामग्री भी रखी हुई थी। ताजा दूब उगी हुई थी। पूजा करने की विधि तो उसे पता ही थी। उसने पुरे मनोयोग और श्रद्धा के साथ पूजा की। बायना निकाला, काँटा फंसाया और कथा कही। बारात गाँव में पहुंची। जब साहुकार ने सातों बेटों को जीवित देखा तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ। Dubdi Saptami Vrat Katha
सारे बेटे साहूकार के पैर पड़ने लगे तो साहूकार बोला, ” बेटा, आज अगर तुम पुनः जिन्दा हो सके हो तो अपनी बुआ के कारण। ये जीवन तुम्हारी बुआ का दिया है। इसलिए सब इनके पैर पड़ो।” बाद में साहूकार ने सारे गाँव में ढिंढोरी पिटवा दी कि अपने बच्चों की जीवन की रक्षा के लिए हर कोई दुबड़ी सात का पाटिया मांडेगा, व्रत करेगा, पूजा करेगा, बायना निकालेगा, काँटा फँसायेगा और कहानी सुनेगा।
हे दुबड़ी माता जैसे साहूकार के बेटों के जीवन की रक्षा की वैसे ही तुम सबकी रक्षा करना।
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Dubdi Saptami Vrat Katha | दुबड़ी सप्तमी व्रत कथा (गणपति की कथा)
एक ब्राह्मण था। वो प्रतिदिन सुबह नदी पर स्नान करके आता और गणपति की पूजा करता था। ब्राह्मणी को इससे चिढ़ होती थी। एक दिन उसने जब ब्राह्मण नदी पर गया हुआ था तब गणपति की प्रतिमा को छुपा दिया। ब्राह्मण स्नान कर लौटा और प्रतिमा के लिए पूछा तो उसने नहीं दी। ब्राह्मणी बोली, “मैं दिन भर खटती रहती हूँ और तुम निखट्टू पूजा पाठ के बहाने आराम फरमाते रहते हो।”
ब्राह्मण बोला, “तू कुछ भी करले, मैं तो मेरे गणपति की पूजा किये बिना अन्न का एक दान भी मुंह में नहीं डालूँगा। “इन दोनों की नौक-झोंक को देखकर गणपति की प्रतिमा मुस्कुराने लगी। ब्राह्मणी को मुस्कुराती प्रतिमा देखकर और गुस्सा आ गया। वो बोली, ” वो पड़ी तुम्हारी मूर्ति” ब्राह्मण की।
गणपति ने उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर कहा, “तुझे मेरी पूजा करते हुए कई बरस हो गए हैं, मैं प्रसन्न हूँ, बोल क्या इच्छा है तेरी? ” ब्राह्मण ने कहा, “अन्न चाहूँ, धन चाहूँ और जगत के सब सुख चाहूँ। “गणपति ने कहा, “तूने तो सब कुछ मांग लिया। जा दिया। ” ब्राह्मणी भी इतना प्रताप देख कर गणपति की पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करने लगी। हे गणपति महाराज जैसे ब्राह्मण को सब सुख दिए वैसे ही सबको देना। Dubdi Saptami Vrat Katha

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