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Ganga Dussehra Stotram : गंगा दशहरा स्तोत्र

Ganga Dussehra Stotram
Ganga Dussehra Stotram

Ganga Dussehra Stotram : गंगा दशहरा स्तोत्र यदि जो भी जातक नियमित रूप से किसी पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करके गंगा दशहरा स्तोत्र का पाठ करते है तो जातक के सभी दोष व पापों का नाश हो जाता है। साथ ही साथ जातक को अग्नि, चोर व सर्प आदि का डर व भय नही रहता हैं। भविष्य पुराण में के इसके बारे में वर्णित हैं। गंगा दशहरा स्तोत्र आदि के बारे में बताने जा रहे हैं।

गंगा दशहरा स्तोत्र Ganga Dussehra Stotram

ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः। नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।।1।।

नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः। सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।।2।।

सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते। स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।3।।

संसार-विष-नाशिन्यै, जीवानायै नमोऽस्तु ते। ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै, प्राणश्यै ते नमो नमः।।4।।

शन्ति-सन्तान-कारिण्यै, नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये। सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै, नमः पापारि-मूर्त्तये।।5।।

भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै, भद्रदायै नमो नमः। भोगोपभोग-दायिन्यै, भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते।।6।।

मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु, स्वर्गदायै नमो नमः। नमस्त्रैलोक्य-भूषायै, त्रि-पथायै नमो नमः।।7।।

नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै, क्षमा-वत्यै नमो नमः। त्रि-हुताशन-संस्थायै, तेजो-वत्यै नमो नमः।।8।।

नन्दायै लिंग-धारिण्यै, सुधा-धारात्मने नमः। नमस्ते विश्व-मुख्यायै, रेवत्यै ते नमो नमः।।9।।

बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु, लोक-धात्र्यै नमोऽस्तु ते। नमस्ते विश्व-मित्रायै, नन्दिन्यै ते नमो नमः।।10।।

पृथ्व्यै शिवामृतायै च, सु-वृषायै नमो नमः। परापर-शताढ्यै, तारायै ते नमो नमः।।11।।

पाश-जाल-निकृन्तिन्यै, अभिन्नायै नमोऽस्तु ते। शान्तायै च वरिष्ठायै, वरदायै नमो नमः।।12।।

उग्रायै सुख-जग्ध्यै च, सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते। ब्रह्मिष्ठायै-ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।13।।

प्रणतार्ति-प्रभञजिन्यै, जग्मात्रे नमोऽस्तु ते। सर्वापत्-प्रति-पक्षायै, मंगलायै नमो नमः।।14।।

शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे। सर्वस्यार्ति-हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।15।।

निर्लेपायै दुर्ग-हन्त्र्यै, सक्षायै ते नमो नमः। परापर-परायै च, गंगे निर्वाण-दायिनि।।16।।

गंगे ममाऽग्रतो भूया, गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः। गंगे मे पार्श्वयोरेधि, गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः।।18।।

आदौ त्वमन्ते मध्ये च, सर्व त्वं गांगते शिवे! त्वमेव मूल-प्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।।19।।

गंगे त्वं परमात्मा च, शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।20।।

।।फल-श्रुति।।

य इदं पठते स्तोत्रं, श्रृणुयाच्छ्रद्धयाऽपि यः। दशधा मुच्यते पापैः, काय-वाक्-चित्त-सम्भवैः।।21।।

रोगस्थो रोगतो मुच्येद्, विपद्भ्यश्च विपद्-युतः। मुच्यते बन्धनाद् बद्धो, भीतो भीतेः प्रमुच्यते।।22।।

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