Kartik Maas Vrat Katha in Hindi | कार्तिक मास 2025: संपूर्ण व्रत कथा और महत्व कार्तिक मास व्रत कथा का पाठ कार्तिक मास के हर दिन को किया जाता हैं हम यहां आपको कार्तिक मास व्रत कथा के साथ में कार्तिक मास व्रत का महत्व और इससे मिलने वाले पुण्य के बारे में बताने जा रहे है।
पापों से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाली कार्तिक मास की चमत्कारी व्रत कथा | Story of Kartik Maas PDF in Hindi
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कार्तिक मास व्रत कथा | Kartik Month All Vrat Stories in Hindi
कार्तिक मास व्रत कब है 2025: When is the Kartik month fast? 2025
कार्तिक मास व्रत अक्टूबर महीने की 08 तारीख, वार बुधवार से शुरू होकर नवम्बर महीने की 05 तारीख, वार बुधवार को समाप्त होगे।
कार्तिक मास व्रत का महत्व | Kartik Maas Vrat Ka Mahatva
हिंदू पंचांग अनुसार हर वर्ष का आठवां महीना कार्तिक होता है। कार्तिक का महीना बारह महीनों में से श्रेष्ठ महीना है। पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष ओए कल्याण प्रदान करने वाला बताया गया है। कार्तिक मास में पूरे माह स्नान, दान, दीप दान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनते हैं। ऎसा करने से अत्यत शुभ फलों की प्राप्ति व पापों का नाश होता है (Kartik Maas Vrat Ka Mahatva)। पुराणों अनुसार जो व्यक्ति इस कार्तिक माह में स्नान, दान तथा व्रत करता है तो उसके सारे पापों का अंत हो जाता है।
श्री कृष्ण जी तो यंहा तक कहा है की कार्तिक का यह महीना भगवान श्रीकृष्ण को अति प्रिय है। इस महीने में किया गया थोड़ा सा भजन भी बहुत ज्यादा फल देता है। भगवान श्री हरि विष्णु ने स्वयं कहा है कि:- ‘कार्तिक माह मुझे अत्यधिक प्रिय है। वनस्पतियों में तुलसी, तिथियों में एकादशी और क्षेत्रों में श्री कार्तिक भी मुझे प्रिय हैं। जो प्राणी जितेन्द्रिय होकर इनका सेवन करता है, वह यज्ञ करने वाले मनुष्य से भी अधिक प्रिय लगता है, उसके समस्त पाप दूर हो जाते हैं।’ ऎसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है।
कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कार्तिक माह की षष्ठी को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता है स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है। कार्तिक माह में पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।
कार्तिक माह में की गई पूजा व् उपवास तीर्थ यात्रा के बराबर शुभ फल जितना होता है (Kartik Maas Vrat Ka Mahatva)। कार्तिक माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में देखने को मिलता है। कार्तिक माह में किए गये स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है।
माना जाता है की जो फल कुम्भ व प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, उतना फल कार्तिक माह में किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मिलता है। इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए । और भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है (Kartik Maas Vrat Ka Mahatva)।
कार्तिक मास की यह कथा सुनने मात्र से बदल जाएगी किस्मत, मिलेगा बैकुंठ धाम | कार्तिक माह व्रत कथा 2025: Kartik Snan Vrat Katha: Daily Bathing & Fasting Stories 2025
किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी और वह कार्तिक का व्रत रखा करती थी. उसके व्रत खोलने के समय कृष्ण भगवान आते और एक कटोरा खिचड़ी का रखकर चले जाते. बुढ़िया के पड़ोस में एक औरत रहती थी. वह हर रोज यह देखकर ईर्ष्या करती कि इसका कोई नहीं है फिर भी इसे खाने के लिए खिचड़ी मिल ही जाती है. एक दिन कार्तिक महीने का स्नान करने बुढ़िया गंगा गई. पीछे से कृष्ण भगवान उसका खिचड़ी का कटोरा रख गए. पड़ोसन ने जब खिचड़ी का कटोरा रखा देखा और देखा कि बुढ़िया नही है तब वह कटोरा उठाकर घर के पिछवाड़े फेंक आई। Kartik Maas Vrat Katha
कार्तिक स्नान के बाद बुढ़िया घर आई तो उसे खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला और वह भूखी ही रह गई. बार-बार एक ही बात कहती कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा खिचड़ी का कटोरा. दूसरी ओर पड़ोसन ने जहाँ खिचड़ी गिराई थी वहाँ एक पौधा उगा जिसमें दो फूल खिले. एक बार राजा उस ओर से निकला तो उसकी नजर उन दोनो फूलों पर पड़ी और वह उन्हें तोड़कर घर ले आया. घर आने पर उसने वह फूल रानी को दिए जिन्हें सूँघने पर रानी गर्भवती हो गई। Kartik Maas Vrat Katha
कुछ समय बाद रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया. वह दोनो जब बड़े हो गए तब वह किसी से भी बोलते नही थे लेकिन जब वह दोनो शिकार पर जाते तब रास्ते में उन्हें वही बुढ़िया मिलती जो अभी भी यही कहती कि कहाँ गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा कटोरा? बुढ़िया की बात सुनकर वह दोनो कहते कि हम है तेरी खिचड़ी और हम है तेरा बेला। Kartik Maas Vrat Katha
हर बार जब भी वह शिकार पर जाते तो बुढ़िया यही बात कहती और वह दोनो वही उत्तर देते. एक बार राजा के कानों में यह बात पड़ गई . उसे आश्चर्य हुआ कि दोनो लड़के किसी से नहीं बोलते तब यह बुढ़िया से कैसे बात करते हैं. राजा ने बुढ़िया को राजमहल बुलवाया और कहा कि हम से तो किसी से ये दोनों बोलते नहीं है, तुमसे यह कैसे बोलते है? बुढ़िया ने कहा कि महाराज मुझे नहीं पता कि ये कैसे मुझसे बोल लेते हैं. मैं तो कार्तिक का व्रत करती थी और कृष्ण भगवान मुझे खिचड़ी का बेला भरकर दे जाते थे। Kartik Maas Vrat Katha
एक दिन मैं स्नान कर के वापिस आई तो मुझे वह खिचड़ी नहीं मिली. जब मैं कहने लगी कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहाँ गया मेरा बेला? तब इन दोनो लड़को ने कहा कि तुम्हारी पड़ोसन ने तुम्हारी खिचड़ी फेंक दी थी तो उसके दो फूल बन गए थे. वह फूल राजा तोड़कर ले गया और रानी ने सूँघा तो हम दो लड़को का जन्म हुआ. हमें भगवान ने ही तुम्हारे लिए भेजा है. Kartik Maas Vrat Katha
सारी बात सुनकर राजा ने बुढ़िया को महल में ही रहने को कहा. हे कार्तिक महाराज। जैसे आपने बुढ़िया की बात सुनी वैसे ही आपका व्रत करने वालों की भी सुनना. Kartik Maas Vrat Katha
कार्तिक मास व्रत का पुण्य | Kartik Maas Vrat Ka Punya
कार्तिक मास में व्यक्ति को सुबह जल्दी जगकर स्नान करने के पश्चात राधा-कृष्ण, तुलसी, पीपल व् आंवले का पुजन करना चाहिए । ऐसा करने से सभी देवताओं की परिक्रमा करने के समान महत्व माना गया है। सांयकाल में भगवान श्री विष्णु जी की पूजा तथा तुलसी की पूजा करनी चाहिए। संध्या समय में दीपदान भी करना चाहिए । कार्तिक मास में राधा-कृष्ण, श्री विष्णु भगवान तथा तुलसी पूजा करने का अत्यंत महत्व है। जो मनुष्य इस माह में इनकी पूजा करता है, उसे सभी पुण्य फलों की प्राप्ति होती है (Kartik Maas Vrat Ka Punya)।
कहा जाता है की कार्तिक मास में व्रत व् पूजा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है (Kartik Maas Vrat Ka Punya)। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए । कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता है स्वामी कार्तिकेय इसके देवता माने जाते है।
पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक की एकादशी तथा पूर्णिमा तिथि का व्रत करने से व्यक्ति को पुण्य व् लाभ मिलता है और सभी मनोकामना की पूर्ण होती है । यही कारण था कि सत्यभामा को श्री कृष्ण पति रूप में प्राप्त हुए क्योंकि उन्होंने पूर्व जन्म में कार्तिक की एकादशी तथा पूर्णिमा को व्रत रखा था ऐसा एक आख्यान में कहा गया है।
स्कंद पुराण में कार्तिक महीने की महिमा बताते हुए कहा गया है की कार्तिक मास का महत्व और मास से ख़ास है इस महीने में व्रत व् पूजा करना और महीने की तुलना में कल्याणकारी, श्रेष्ठ व उत्तम बताया है। यह बात स्वयं नारायण ने ब्रह्मा से, ब्रह्मा ने नारद से तथा नारद ने महाराज पृथु से कही हैं।
शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति संकल्प लेकर पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ़ कपडे धारण करने के बाद जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती हैं। मान लीजिये की किसी कारणवश से कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है, अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं हो तो ऐसी स्थिति में कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला त्रिकार्तिक व्रत है।
कार्तिक मास व्रत के स्नान का महत्व | Kartik Maas Vrat Ke Snan Ka Mahatva
आध्यात्मिक ऊर्जा एवं शारीरिक शक्ति संग्रह करने में कार्तिक मासका विशेष महत्व है। इसमें सूर्य की किरणों एवं चन्द्र किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव मनुष्य के मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है। इसीलिए शास्त्रों में कार्तिक स्नान और कथा श्रवण महात्म्य पर विशेष जोर दिया गया है । धार्मिक कार्यों के लिए यह मास सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है। श्रद्धालु गंगा तथा यमुना में सुबह- सवेरे स्नान करते हैं। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर पाते हैं, वह सुबह अपने घर में स्नान व पूजा पाठ करते हैं।
कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए। तुलसी पूजा का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि तुलसी के पत्ते पंचामृत में डालने पर चरणामृत बन जाता है। तुलसी में अनन्त औषधीय गुण भी विद्यमान हैं। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इन्हें विष्णु प्रिया कहकर पूजनीय माना।
देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक छः माह तुलसी की विशेष पूजा होती है। कार्तिक में तो इनका अत्याधिक महत्व बढ़ जाता है। इस मास में आप जितना दान, तप, व्रत रखेगा। आपके ऊपर उतना ही श्री हरि विष्णु की कृपा जरूर होगी (Kartik Maas Vrat Ke Snan Ka Mahatva) । वह परम कृपा का भागीदार होगा।
Kartik Maas Vrat Ke Snan का पुराणों में उल्लेख मिलता है। “न कार्तिक समो मासो न कृतेन समं युगम्। न वेदसद्दशं शास्त्रं न तीर्थ गंगा समम् ।।”
अर्थ: इसका मलतब है कि कार्तिक मास के समान कोई दूसरा मास श्रेष्ठ नही है, जैसे कि सतयुग के समान कोई युग, वेद के समान कोई शास्त्र नही और गंगा जी के समान कोई दूसरी नदी नही है।
“मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन। तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।”
अर्थ: साथ ही स्कंद पुराण वै. खं. कां. मा. 1/14 में विष्णु भगवान ने कहा है कि कार्तिक मास से सभी मास से श्रेष्ठ और दुर्लभ है (Kartik Maas Vrat Ke Snan Ka Mahatva)।

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