Maa Kalratri Vrat Katha 2025 : नवरात्रि में सातवें दिन की जाती है माँ कालरात्रि माता व्रत की कथा की पूजा में, पढ़ें पावन ये कथा माँ कालरात्रि जी के बारे में बताने जा रहे हैं, यहां हम आपको माता कालरात्रि देवी का स्वरूप और मां कालरात्रि कथा की विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
माता कालरात्रि देवी का स्वरूप
असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था ये शरणागतों को सदैव शुभ फल देनेवाली मानी जाती है, जिस कारण माता को शुभंकरी भी कहा जाता है अन्धकार का नाश कर प्रकाश प्रदान करने वाली माता कालरात्रि की पूजा होती है भय का विनाश करने वाली और काल से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली माता कालरात्रि का स्वरुप बड़ा ही भयानक है, नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के समान सदृश्य गोल है गले में विद्युत् की तरह चमकने वाली माला है इनकी नासिका से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती रहती है इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है इनके चार हाथ है।
जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है नवरात्रि में सप्तमी की पूजा का बड़ा महत्व होता है क्योंकि देवी का यह रूप सिद्धि प्रदान करने वाला है यह दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
माँ कालरात्रि कथा
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया।
इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया इससे भक्तों को मनोवांछित फल मिलता है।
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