Shami Puja Vidhi on Dussehra 2025: Step-by-Step Rituals, Mantra & Significance दशहरा 2025: शमी पूजा की संपूर्ण विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और महत्व स्कंद पुराण के अनुसार यदि जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी तिथि के दिन किया जाता हैं, यंहा हम आपको शमी पेड़ की पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं। Free Upay.in द्वारा बताये जा रहे शमी पूजा विधि (Shami Puja Vidhi) को करके आप भी विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करके अपनी समस्त मनोकामना पूरी करा सकते हैं।
विजयादशमी पर शमी वृक्ष की पूजा विधि, सामग्री लिस्ट और पौराणिक कथा | Shami Puja Vidhi, Samagri & Benefits on Dussehra
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दशहरा पर शमी पूजा कैसे करें? जानें सरल विधि, सही मंत्र और इसके फायदे | Dussehra 2025 Shami Puja Vidhi in Hindi – सही पूजा विधि
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➤दशहरा पूजा 2025: संपूर्ण विधि, शुभ मुहूर्त और पूजा मंत्र
शमी पूजा शुभ मुहूर्त: Shami Puja Auspicious Time
सुबह 06:20 से सुबह 07:49 तक
सुबह 10:47 से दोपहर 15:14 तक
सांय 16:43 से सांय 18:12 तक
👉 स्कंद पुराण के अनुसार जातक को स्नान आदि करके साफ़ कपड़े धारण करें। उसके बाद फिर उत्तर पूर्व दिशा में अपराह्न के समय में विजय और कल्याण की कामना से करना चाहिए ! हिन्दू धर्म के अनुसार अपराजिता पूजन के लिए दोपहर के समय उत्तर-पूर्व व् ईशान कोण की तरफ एक साफ शुद्ध भूमि और स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीपना चाहिए। उसके बाद फिर चंदन से आठ कोण ( चंदन, कुमकुम, पुष्प से अष्टदल कमल ) दल बनाकर संकल्प इस प्रकार से करना चाहिए – “मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता पूजन करिष्ये”।
अब इसके पश्चात उस आकृति के बीच में अपराजिता देवी का आवाहन करना चाहिए और इसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए एवं साथ ही क्रिया शक्ति को नमस्कार एवं उमा को नमस्कार करना चाहिए । इसके पश्चात “अपराजितायै नमः” “जयायै नमः” “विजयायै नमः” मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके बाद यह प्रार्थना करनी चाहिए की – ” हे देवी, यथाशक्ति मैंने श्रदा और आस्था के साथ आपकी जो पूजा की है वो अपनी रक्षा के लिए की है उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं। इस प्रकार अपराजिता देवी पूजन करने के बाद उत्तर-पूर्व की ओर शमी वृक्ष की तरफ जाकर Shami Puja करना चाहिए।
शमी के पेड़ के पास जाकर सच्चे मन से प्रमाण करके गंगाजल मिश्रित शुद्ध जल चढ़ाएं। उसके बाद तेल या शुद्ध घी का दीपक जलाकर उसके नीचे अपने सभी शस्त्र रख दें। फिर पेड़ के साथ शस्त्रों को धूप, दीप, मिठाई चढ़ाकर आरती कर पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। साथ ही हाथ जोड़ कर सच्चे मन से यह नीचे दिए गये Shami Puja Mantra से प्रार्थना करें।
शमी पूजा मंत्र: Shami Puja Mantra
👉 ‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’
👉 इसका अर्थ है हे शमी वृक्ष आप पापों को नाश और दुश्मनों को हराने वाले है। आपने ही शक्तिशाली अर्जुन का धनुश धारण किया था। साथ ही आप प्रभु श्रीराम के अतिप्रिय है। ऐसे में आज हम भी आपकी Shami Puja कर रहे हैं। हम पर कृपा कर हमें सच्च व जीत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दें। साथ ही हमारी जीत के रास्ते पर आने वाली सभी बांधाओं को दूर कर हमें जीत दिलाए।
यह Shami Puja Mantra प्रार्थना करने के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखें और फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आये। फिर थोड़ी सी मिट्टी वृक्ष के पास से लेकर उसे किसी पवित्र स्थान पर रख दें ! अगर आपको पेड़ के पास कुछ गिरी हुई पत्तियां मिलें तो उसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।
साथ ही बाकी की पत्तियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रखें। इससे आपके जीवन की परेशानियां दूर होने के साथ दुश्मनों से छुटकारा मिलेगा। इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी पेड़ से अपने आप गिरी पत्तियां उठानी है। खुद पेड़ से पत्तों को तोड़ने की गलती न करें।
ध्यान रखे की Shami Puja में शमी के कटे फटे हुए पत्ते और डालियों नही होनी चाहिए क्युकी इसे डालियाँ और पत्ते का पूजन निधेष होता है ! भगवान श्री राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति दान कर दी तथा पर्ण कुटिया में रहने लगे। इसी समय कौत्स को चोदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की आवश्कता गुरु दक्षिणा के लिए पड़ी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया तब कुबेर ने शमी एवं अश्मंतक पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की थी तब से शमी व अश्मंतक की पूजा की जाती है।
अश्मंतक के पत्र घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ। अश्मंतक की पूजा के समय निम्न मंत्र बोलना चाहिए: अश्मंतक महावृक्ष महादोष निवारणम। इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशम।। अर्थात हे अश्मंतक महावृक्ष तुम महादोषों का निवारण करने वाले हो, मुझे मेरे मित्रों का दर्शन कराकर शत्रु का नाश करो।

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