Somvati Amavasya Vrat Katha : सोमवती अमावस्या के दिन इस व्रत कथा को करने से मिलता है स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद सोमवार के दिन आने वाली अमावस्या तिथि को “सोमवती अमावस्या” के नाम से जाना जाता है। हमारे द्वारा बताये जा रहे सोमवती अमावस्या व्रत कथा को पढ़कर आप भी सोमवती अमावस्या की पूजा विधि को पूरी कर सकते हैं।
सोमवती अमावस्या व्रत कथा — Somvati Amavasya Vrat Katha
एक गरीब ब्राह्मण का परिवार था, जिसमे दोनों पति व् पत्नी दम्पति के एक पुत्री भी थी । दम्पति की पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी । उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था । ब्राह्मण की लड़की सुन्दर, पूर्ण रूप से संस्कारवान एवं गुणवान होते हुए भी उसका विवाह नही हो रहा था ! क्यों की वो एक गरीब परिवार से थी। एक रोज ब्राह्मण के घर एक साधू का आगमन हुआ, उस साधू महाराज की उस ब्राहमण की कन्या से देवा की जिसको देखकर साधु काफी प्रसन्न हुए।
और साधु ने कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद दिया पर उनकी नजर कन्या के हाथ की हथेली पर पड़ी हथेली को देखकर साधु ने गरीब ब्राहमण से कहा की इसके हाथों में विवाह की रेखा ही नही है ! ब्राहमण यह सुन बहुत परेशान हुआ और ब्राह्मण दम्पति ने साधू से इस समस्या का कोई उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे जिसके उसका विवाह का योग बन जाये।
साधू ने कुछ देर ध्यान लगाकर अपनी अंतर्दृष्टि से बताया कि आपके यंहा से कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोबन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार से संपन्न तथा पति परायण है। यदि आपकी यह कन्या उसकी सेवा करे और वह धोबन महिला इसके मांग अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, तो उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर कन्या की माँ ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही।
कन्या तडके जल्दी ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके उसके उठाने से पहले अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तडके ही उठकर सारे काम कर लेती हो और मुझे पता भी नहीं चलता है। इस पर धोबिन की बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ । इस पर दोनों सास और बहू अपने घर की निगरानी करने लगे की उसके घर में कौन आता है जो तडके ही घर का सारा काम करके वापस से चला जाता है।
लगातार निगरानी के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या जल्दी सुबह अंधेरे में उसके घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है । जब वह कन्या जैसे की जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह मेरे घर पर छुपकर मेरे घर की चाकरी करके चली जाती हो और एसा क्यों कर रही हो । तब कन्या ने साधु द्वारा कही गई सारी बातें बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति की जान निकल गई। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निर्जल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राहमण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया । ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा। और उसका पति वापस से जीवित हो गया।