वामन अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् | Vaman Ashtottara Shatanama Stotram (The 108 Divine Names of Vamana) Lyrics, Meaning & Benefits कहा जाता है की भगवान श्री विष्णु जी को दसावतार के नाम से भी जाना चाहता हैं। जिसमे से एक अवतार वामन अवतार हैं। श्री वामन अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से भगवान श्री विष्णु जी के श्री वामन अवतार का आशीर्वाद बना रहता हैं। श्री वामन शतनामावली स्तोत्रम के बारे में बताने जा रहे हैं।
Vaman Ashtottara Shatanama Stotram (from the Puranas) | मनोकामना पूर्ति के लिए पढ़ें वामन भगवान के 108 नाम (संपूर्ण वामन अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र)
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वामनो वारिजाताक्षो वर्णी वासवसोदरः ।
वासुदेवो वावदूको वालखिल्यसमो वरः ॥ १॥
वेदवादी विद्युदाभो वृतदण्डो वृषाकपिः ।
वारिवाहसितच्छत्रो वारिपूर्णकमण्डलुः ॥ २॥
वलक्षयज्ञोपवीतो वरकौपीनधारकः ।
विशुद्धमौञ्जीरशनो विधृतस्फाटिकस्रजः ॥ ३॥
वृतकृष्णाजिनकुशो विभूतिच्छन्नविग्रहः ।
वरभिक्षापात्रकक्षो वारिजारिमुखो वशी ॥ ४॥
वारिजाङ्घ्रिर्वृद्धसेवी वदनस्मितचन्द्रिकः ।
वल्गुभाषी विश्वचित्तधनस्तेयी विशिष्टधीः ॥ ५॥
वसन्तसदृशो वह्नि शुद्धाङ्गो विपुलप्रभः ।
विशारदो वेदमयो विद्वदर्धिजनावृतः ॥ ६॥
वितानपावनो विश्वविस्मयो विनयान्वितः ।
वन्दारुजनमन्दारो वैष्णवर्क्षविभूषणः ॥ ७॥
वामाक्षीमदनो विद्वन्नयनाम्बुजभास्करः ।
वारिजासनगौरीशवयस्यो वासवप्रियः ॥ ८॥
वैरोचनिमखालङ्कृद्वैरोचनिवनीवकः ।
वैरोचनियशस्सिन्धुचन्द्रमा वैरिबाडबः ॥ ९॥
वासवार्थस्वीकृतार्थिभावो वासितकैतवः ।
वैरोचनिकराम्भोजरससिक्तपदाम्बुजः ॥ १०॥
वैरोचनिकराब्धारापूरिताञ्जलिपङ्कजः ।
वियत्पतितमन्दारो विन्ध्यावलिकृतोत्सवः ॥ ११॥
वैषम्यनैर्घृण्यहीनो वैरोचनिकृतप्रियः ।
विदारितैककाव्याक्षो वांछिताज्ङ्घ्रित्रयक्षितिः ॥ १२॥
वैरोचनिमहाभाग्य परिणामो विषादहृत् ।
वियद्दुन्दुभिनिर्घृष्टबलिवाक्यप्रहर्षितः ॥ १३॥
वैरोचनिमहापुण्याहार्यतुल्यविवर्धनः ।
विबुधद्वेषिसन्त्रासतुल्यवृद्धवपुर्विभुः ॥ १४॥
विश्वात्मा विक्रमक्रान्तलोको विबुधरञ्जनः ।
वसुधामण्डलव्यापिदिव्यैकचरणाम्बुजः ॥ १५॥
विधात्रण्डविनिर्भेदिद्वितीयचरणाम्बुजः ।
विग्रहस्थितलोकौघो वियद्गङ्गोदयाङ्घ्रिकः ॥ १६॥
वरायुधधरो वन्द्यो विलसद्भूरिभूषणः ।
विष्वक्सेनाद्युपवृतो विश्वमोहाब्जनिस्स्वनः ॥ १७॥
वास्तोष्पत्यादिदिक्पालबाहु र्विधुमयाशयः ।
विरोचनाक्षो वह्न्यास्यो विश्वहेत्वर्षिगुह्यकः ॥ १८॥
वार्धिकुक्षिर्वारिवाहकेशो वक्षस्थ्सलेन्दिरः ।
वायुनासो वेदकण्ठो वाक्छन्दा विधिचेतनः ॥ १९॥
वरुणस्थानरसनो विग्रहस्थचराचरः ।
विबुधर्षिगणप्राणो विबुधारिकटिस्थलः ॥ २०॥
विधिरुद्रादिविनुतो विरोचनसुतानन्दनः ।
वारितासुरसन्दोहो वार्धिगम्भीरमानसः ॥ २१॥
विरोचनपितृस्तोत्रकृतशान्तिर्वृषप्रियः ।
विन्ध्यावलिप्राणनाध भिक्षादायी वरप्रदः ॥ २२॥
वासवत्राकृतस्वर्गो वैरोचनिकृतातलः ।
वासवश्रीलतोपघ्नो वैरोचनिकृतादरः ॥ २३॥
विबुधद्रुसुमापाङ्गवारिताश्रितकश्मलः ।
वारिवाहोपमो वाणीभूषणोऽवतु वाक्पतिः ॥ २४॥
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