Varaha Jayanti Vrat Katha: The Story of Hiranyaksha Vadh (2025 Date): श्री वराह जयंती व्रत कथा: हिरण्याक्ष वध की संपूर्ण कहानी (पढ़ें) हम यहां आपको श्री वराह जयंती कब मनाई जाती हैं, और श्री वराह जयंती मनाने के पीछे की व्रत कथा के बारे में यहां बताने जा रहे हैं नीचे बताई जा रही श्री वराह जयंती व्रत कथा का पाठ आपको श्री वराह जयंती के दिन करना चाहिए इससे भगवान वराह देव का आशीर्वाद मिलता हैं।
Benefits of Varaha Jayanti Vrat: The Miraculous Katha for Success: वराह जयंती व्रत का महत्व: जानें कथा और पूजा करने के लाभ
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Varaha Jayanti 2025 Kab Hai? जानें सही तारीख
इस साल 2025 में श्री वराह जयंती व्रत (Varaha Jayanti Vrat) 25 अगस्त, वार सोमवार के दिन बनाई जाएगी।
वराह व्रत व जयंती का विधान धर्मशास्त्रों में विभिन्न मास व तिथियों में वर्णित है। निर्णयसिंधु प्रोक्त वराहपुराणानुसार – ”नभस्य शुक्ल पंचम्यां वराहस्य जयन्तिका” यही वराह जयंती है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार क्रमशः भाद्रपद शुक्ल तृतीया (अपराह्न) एवं श्रावण शुक्ल षष्ठी तथा चैत्र कृष्ण नवमी भी वराह जयंती के रूप में मान्य है । परंतु सभी पंचांगों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल तृतीया ही वराह जयंती के रूप में सर्वमान्य है।
वराह अवतार जयंती व्रत कथा || Varaha Avatar Jayanti Vrat Katha
एक बार मरीचि नन्दन कश्यप जी ने भगवान को प्रसन्न करने के लिये खीर की आहुति दिया और उनकी आराधना समाप्त करके सन्ध्या काल के समय अग्निशाला में ध्यानस्थ होकर बैठे गये। उसी समय दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति (यह कश्यप की पत्नी तथा दैत्यों की माता हैं।) कामातुर होकर पुत्र प्राप्ति की लालसा से कश्यप जी के निकट गई। दिति ने कश्यप जी से मीठे वचनों से अपने साथ रमण करने के लिये प्रार्थना किया। इस पर कश्यप जी ने कहा, “हे प्रिये! मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छानुसार तेजस्वी पुत्र अवश्य दूँगा।
किन्तु तुम्हें एक प्रहर के लिये प्रतीक्षा करनी होगी। सन्ध्या काल में सूर्यास्त के पश्चात् भूतनाथ भगवान शंकर अपने भूत, प्रेत तथा यक्षों को लेकर बैल पर चढ़ कर विचरते हैं। इस समय तुम्हें कामक्रीड़ा में रत देख कर वे अप्रसन्न हो जावेंगे। अतः यह समय सन्तानोत्पत्ति के लिये उचित नहीं है। सारा संसार मेरी निन्दा करेगा। यह समय तो सन्ध्यावन्दन और भगवत् पूजन आदि के लिये ही है। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं वे नरकगामी होते हैं।” Varaha Avatar Jayanti Vrat Katha
पति के इस प्रकार समझाने पर भी उसे कुछ भी समझ में न आया और उस कामातुर दिति ने निर्लज्ज भाव से कश्यप जी के वस्त्र पकड़ लिये। इस पर कश्यप जी ने दैव इच्छा को प्रबल समझ कर दैव को नमस्कार किया और दिति की इच्छा पूर्ण की और उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कर के सनातन ब्रह्म रूप गायत्री का जप करने लगे। दिति ने गर्भ धारण कर के कश्यप जी से प्रार्थना की, “हे आर्यपुत्र! भगवान भूतनाथ मेरे अपराध को क्षमा करें और मेरा यह गर्भ नष्ट न करें। उनका स्वभाव बड़ा उग्र है। किन्तु वे अपने भक्तों की सदा रक्षा करते हैं। वे मेरे बहनोई हैं मैं उन्हें नमस्कार करती हूँ।”
कश्यप जब सन्ध्यावन्दन आदि से निवृत हुये तो उन्होंने अपनी पत्नी को अपनी सन्तान के हित के लिये प्रार्थना करते हुये और थर थर काँपती हुई देखा तो वे बोले, “हे दिति! तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुम्हारा चित्त काम वासना में लिप्त था। तुमने असमय में भोग किया है। तुम्हारे कोख से महा भयंकर अमंगलकारी दो अधम पुत्र उत्पन्न होंगे। सम्पूर्ण लोकों के निरपराध प्राणियों को अपने अत्याचारों से कष्ट देंगे। धर्म का नाश करेंगे। साधू और स्त्रियों को सतायेंगे। उनके पापों का घड़ा भर जाने पर भगवान कुपित हो कर उनका वध करेंगे।” Varaha Avatar Jayanti Vrat Katha
दिति ने कहा, “हे भगवन्! मेरी भी यही इच्छा है कि मेरे पुत्रों का वध भगवान के हाथ से ही हो। ब्राह्मण के शाप से न हो क्योंकि ब्राह्मण के शाप के द्वारा प्राणी नरक में जाकर जन्म धारण करता है।” तब कश्यप जी बोले, “हे देवि! तुम्हें अपने कर्म का अति पश्चाताप है इस लिये तुम्हारा नाती भगवान का बहुत बड़ा भक्त होगा और तुम्हारे यश को उज्वल करेगा। वह बालक साधुजनों की सेवा करेगा और काल को जीत कर भगवान का पार्षद बनेगा।”
कश्यप जी के मुख से भगवद्भक्त पौत्र के उत्पन्न होने की बात सुन कर दिति को अति प्रसन्नता हुई और अपने पुत्रों का वध साक्षात् भगवान से सुन कर उस का सारा खेद समाप्त हो गया। Varaha Avatar Jayanti Vrat Katha
उसके दो पुत्र हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यपु का जन्म हुआ और विधि के विधानों के हिसाब से ये दुष्टता की राह पर चल पड़े। ये तथा इनके वंश राक्षस कहलाए परंतु प्रभु की इच्छा से इनके कुल में प्रहलाद और बलि जैसे महापुरुषों का जन्म भी हुआ।
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The Sacred Story for Varaha Jayanti Vrat (Full Katha & Meaning): श्री वराह जयंती व्रत कथा: हिरण्याक्ष वध की संपूर्ण कहानी (पढ़ें)
सुखसागर कथा के अनुसार जब ब्रह्मा सृष्टि की रचना कर रहे थे उस समय मनु ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘मनुष्य के निवास के लिए स्थान प्रदान कीजिए।’ ब्रह्मा जी के नाक से उस समय वराह रूप में भगवान विष्णु प्रकट हुए। विशालकाय और पराक्रमी वराह भगवान छलांग लगाकर अथाह समुद्र में कूद पड़े, जहां दैत्यों द्वारा पृथ्वी को छुपाकर रखा गया था। वहां से अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठाकर भगवान तीव्र गति से सागर-तल से ऊपर आ रहे थे।
उसी समय हिरण्यकशिपु का भाई हिरण्याक्ष रास्ते में खड़ा हो गया और उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगा। उस समय हिरण्याक्ष के अपशब्द पर वराह रूपी विष्णु को क्रोध आया, परंतु क्रोध पर काबू रखते हुए भगवान वराह अत्यंत तीव्र गति से उस ओर आगे बढ़ते रहे जहां पृथ्वी को स्थित करना था। पृथ्वी को स्थापित करने के पश्चात भगवान हिरण्याक्ष से युद्ध करने लगे और देखते देखते हिरण्याक्ष के प्राण-पखेरू उड़ गये। Varaha Avatar Jayanti Vrat Katha
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