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Vasudev Krut Krishna Stotra (Brahma Purana) – Lyrics & Meaning: श्री वसुदेव कृत कृष्ण स्तोत्र (ब्रह्मपुराण) – कथा, अर्थ व PDF

Vasudev Krut Krishna Stotra (Brahma Purana) – Lyrics & Meaning: श्री वसुदेव कृत कृष्ण स्तोत्र (ब्रह्मपुराण) – कथा, अर्थ व PDF वासुदेव कृत श्री कृष्ण स्तोत्र का वर्णित आपको ब्रह्मपुराण में मिल जायेगा। Vasudev Krut Shrikrishna Stotra के रचियता वासुदेव जी ने की हैं। वासुदेव कृत श्री कृष्ण स्तोत्र भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित हैं। वासुदेव कृत श्री कृष्ण स्तोत्र का उपयोग भगवान श्री कृष्ण जी की आराधना में किया जाता हैं इससे अपने घर में सुख शांति व् सुख समृद्धि का वास होता हैं। Vasudev Krut Shrikrishna Stotra के बारे में बताने जा रहे हैं।

The Prayer to Krishna’s Divine Form (Vasudev Krut Stotram) – Full Lyrics: जब वसुदेव ने की कृष्ण की स्तुति: जन्म की कथा और संपूर्ण श्लोक

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Vasudev Krut Krishna Stotra
Vasudev Krut Krishna Stotra

श्रीमन्तमिन्द्रियातीतमक्षरं निर्गुणं विभुम् ।

ध्यानासाध्यं च सर्वेषां परमात्मानमीश्र्वरम् ॥ १ ॥

स्वेच्छामयं सर्वरुपं स्वेच्छारुपधरं परम् ।

निर्लिप्तं परमं ब्रह्म बीजरुपं सनातनम् ॥ २ ॥

स्थूलात् स्थूलतरं व्याप्तमतिसूक्ष्ममदर्शनम् ।

स्थितं सर्वशरीरेषु साक्षिरूपमदृश्यकम् ॥ ३ ॥

शरीरवन्तं सगुणमशरीरं गुणोत्करम् ।

प्रकृतिं प्रकृतीशं च प्राकृतं प्रकृतेः परम् ॥ ४ ॥

सर्वेशं सर्वरूपं च सर्वान्तकरमव्ययम् ।

सर्वाधारं निराधारं निर्व्यूहं स्तौमि किं विभो ॥ ५ ॥

अनन्तः स्तवनेsशक्तोsशक्ता देवी सरस्वती ।

यं स्तोतुमसमर्थश्र्च पञ्चवक्त्रः षडाननः ॥ ६ ॥

चतुर्मुखो वेदकर्ता यं स्तोतुमक्षमः सदा ।

गणेशो न समर्थश्र्च योगीन्द्राणां गुरोर्गुरुः ॥ ७ ॥

ऋषयो देवताश्र्चैव मुनीन्द्रमनुमानवाः ।

स्वप्ने तेषामदृश्यं च त्वामेवं किं स्तुवन्ति ते ॥ ८ ॥

श्रुतयः स्तवनेsशक्ताः किं स्तुवन्ति विपश्र्चितः ।

विहायैवं शरीरं च बालो भवितुमर्हसि ॥ ९ ॥

वसुदेवकृतं स्तोत्रं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।

भक्तिदास्यमवाप्नोति श्रीकृष्णचरणाम्बुजे ॥ १० ॥

विशिष्टपुत्रं लभते हरिदासं गुणान्वितम् ।

सङकटं निस्तरेत् तूर्णं शत्रुभीत्या प्रमुच्यते ॥ ११ ॥ ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे वसुदेवकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

Krishna Ashtakam – Lyrics, Meaning & PDF: श्री कृष्णाष्टकम् – आदि शंकराचार्य कृत (अर्थ व लाभ)

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