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Krishnashraya Stuti Lyrics & Meaning – सुख, शांति और कृपा के लिए रोजाना पाठ करे कृष्णाश्रय स्तुति का

Krishnashraya Stuti Lyrics & Meaning – सुख, शांति और कृपा के लिए रोजाना पाठ करे कृष्णाश्रय स्तुति का इस कृष्णाश्रय स्तुति के रचियता श्री वल्लभाचार्य जी हैं। कृष्णाश्रय स्तुति भगवान श्री कृष्ण जी भक्तिमय रचना हैं। कृष्णाश्रय स्तुति के बारे में बताने जा रहे हैं।

श्री कृष्णाश्रय स्तुति – Shri Vallabhacharya’s Krishnashray Stotra – Complete Lyrics & Hindi Meaning

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Krishnashraya Stuti

सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।

पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥१॥

म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।

सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥२॥

गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।

तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥३॥

अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।

लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥४॥

अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।

तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥५॥

नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।

पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥६॥

अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।

ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥७॥

प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।

पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम॥८॥

विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः।

पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥९॥

सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।

शरणस्थ समुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥१०॥

कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।

तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥११॥

Krishna Chandra Ashtakam – कृष्ण चन्द्रा अष्टकम संपूर्ण पाठ और लाभ

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