Krishna Thavarajah: कृष्ण स्तव राजः श्री कृष्ण स्तव राजः भगवान श्री शिव जी के द्वारा कहा हुआ हैं। Sri Krishna Thavarajah भगवान श्री कृष्ण जी समर्पित हैं। श्री कृष्ण स्तव राजः का पाठ विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी या भगवान श्री कृष्ण जी से संबंधित अन्य कई त्योहारों पर किया जाता हैं। Sri Krishna Thavarajah का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं। श्री कृष्ण स्तव राजः के बारे में बताने जा रहे हैं।
श्री कृष्ण स्तव राजः || Sri Krishna Thavarajah
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महादेव उवाच –
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्तोत्रं परमदुर्लभं
यद्ज्ञात्वा न पुनर्गच्छेन्नरो निरययातनाम् ॥१॥
नारदाय च यत्प्रोक्तं ब्रह्मपुत्रेण धीमता
सनत्कुमारेण पुरा योगीन्द्रगुरुवर्त्मना ।।२॥
!! स्तोत्रम् !!
प्रसीद भगवन्मह्यं अज्ञानात्कुण्ठितात्मने।
तवांघ्रिपङ्कजरजोरागिणीं भक्तिमुत्तमाम् ॥३॥
अज प्रसीद भगवन्नमितद्युतिपञ्जर! ।
अप्रमेय प्रसीदास्मद् दुःखहन् पुरुषोत्तम! ॥४॥
स्वसंवेद्य प्रसीदास्मदानन्दात्मन्ननामय ।
अचिन्त्यसारविश्वात्मन् प्रसीद परमेश्वर! ॥५॥
प्रसीद तुङ्गतुङ्गानां प्रसीद शुभशोभन!।
प्रसीद गुणगंभीर! गंभीराणां महाद्युते ! ॥६॥
प्रसीदाव्यक्तविस्तीर्ण विस्तीर्ण नामगोचर!।
प्रसीदार्द्रार्द्रजातीनां प्रसीदान्तान्तदायिनाम् ॥७॥
गुरोर्गरीयः सर्वेश! प्रसीदानन्ददेहिनाम्।
जय माधव मायात्मन्! जय शाश्वतशंखभृत् ॥८॥
जय शंखधर श्रीमन् जय नन्दकनन्दन!
जय चक्रगदापाणे जय देव जनार्दन! ॥९॥
जयरत्नवराबद्धकिरीटाक्रान्तमस्तक! ।
जय पक्षिपतिच्छायानिरुद्धार्ककरारुण! ॥१०॥
नमस्ते नरकाराते नमस्ते मधुसूदन! ।
नमस्ते ललितापाङ्ग! नमस्ते नरकान्तक! ॥११॥
नमः पापहरेशान! नमः सर्वभयापह! ।
नमः सम्भूतसर्वात्मन् नमः संभृतकौस्तुभ! ॥१२॥
नमस्ते नयनातीत नमस्ते भयहारक!
नमो विभिन्नवेषाय नमः श्रुतिपथातिग! ॥१३॥
नमस्त्रिमूर्तिभेदेन सर्गस्थित्यन्तहेतवे।
विष्णवे त्रिदशाराति जिष्णवे परमात्मने ॥१४॥
चक्रभिन्नारिचक्राय चक्रिणे चक्रवल्लभ!
विश्वाय विश्ववन्द्याय विश्वभूतानुवर्तिने ॥१५॥
नमोऽस्तु योगिध्येयात्मन् नमोस्त्वध्यात्मरूपिणे ।
भक्तिप्रदाय भक्तानां नमस्ते मुक्तिदायिने ॥१६॥
पूजनं हवनं चेज्या ध्यानं पश्चान्नमस्क्रिया।
देवेश कर्म सर्वं मे भवेदाराधनं तव ॥१७॥
इति हवनजपार्चाभेदतो विष्णुपूजा,
नियतहृदयकर्मा यस्तु मन्त्री चिराय।
स खलु सकलकामान् प्राप्य कृष्णान्तरात्मा,
जननमृतिविमुक्तोऽत्युत्तमां भक्तिमेति ॥१८॥
गोगोपगोपिकावीतं गोपालं गोष्ठगोप्रदम्।
गोपैरीड्यं गोसहस्रैर्नौमि गोकुलनायकम् ॥१९॥
प्रीणयेदनया स्तुत्या जगन्नाथं जगन्मयम्,
धर्मार्थकाममोक्षाणामाप्तये पुरुषोत्तमम् ॥२०॥

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