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Ashwattha Maruti Puja Vidhi : Ashwath Maruti Puja Vidhi : अश्वत्थमारुति पूजा विधि

Ashwattha Maruti Puja Vidhi : Ashwath Maruti Puja Vidhi : अश्वत्थमारुति पूजा विधि सावन मास के शुक्ल पक्ष के शनिवार और भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के शनिवार के दिन अश्वत्थमारुति पूजा की जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से श्री हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन पीपल वृक्ष की डाली की पूजा अर्चना की जाति हैं ! हम यंहा आपको कैसे करें अश्वत्थमारुति की पूजा की जानकारी देने जा रहे हैं।

अश्वत्थमारुति पूजा विधि || Ashwattha Maruti Puja Vidhi

Ashwattha Maruti Puja Vidhi
Ashwattha Maruti Puja Vidhi

अश्वत्थमारुति पूजा कब की जाती हैं?

सावन मास के शनिवार और भाद्रपद मास के शनिवार के दिन अश्वत्थमारुति पूजा की जाती हैं।

अश्वत्थमारुति पूजा विधि

सबसे पहले अश्वत्थ की ड़ाली यानी पीपल की टहनी लाकर उसकी पूजा की जाती है। अश्वत्थ पूजा के समय नीचे दिए गये मंत्र का जाप करके पूजा करें।

“ॐ अश्वत्थाय नम:।”

“ॐ ऊध्वमुखाय नम:।”

“ॐ वनस्पतये नम:।”

ऊपर बताये गये  मंत्रोच्चार के साथ फिर वैदिक पद्धति से पूजा होती है। फिर इस समय “श्रीपंचमुखहनुमत्कवच” या “संकटमोचन श्री हनुमान स्तोत्र” का पाठ करें। उसके बाद बताये गये अश्वत्थ मारुति पूजा मंत्र का 54 या 108 बार जाप करे।

अश्वत्थ मारुति पूजा मंत्र

“ॐ श्रीरामदूताय हनुमंताय महाप्राणाय महाबलाय नमो नम:।:”

इस बाद पाँच अविवाहित पुरुष श्रद्धावानों द्वारा सिंदूर अर्चन किया जाता है। उसके बाद अपने सामने श्री हनुमान जी मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करके दूध से अभिषेक किया जाता है। इसके साथ ही पंचमुखी हनुमानजी के मूर्ति पर भी अभिषेक किया जाता है। इस समय इच्छुक श्रद्धावानों के लिए सुपारी पर प्रतिकात्मक अभिषेक करने की सुविधा की गई होती है (इच्छुक श्रद्धावान सुपारी पर प्रतिकात्मक अभिषेक कर सकते हैं)। सभी श्रद्धावानों को शिल्पाकृति हनुमानजी की मूर्ति पर सिंदूर लगाकर दर्शन करने की भी सुविधा होती है। ‘भीमरुपी महारुद्रा’ नामक इस मारुती स्तोत्र से एवं पूर्णाहुती से अश्वत्थ मारुति पूजा समाप्त होता है।

श्री हनुमान जी की माँ अर्थात अंजनीमाता। उनके प्रतीक स्वरूप हनुमानजी के मूर्ति के समक्ष धूनीमाता की निर्मिती की गई होती है। साथ ही उनकी भी पूजा की जाती है। धूनी माता के पूजन में प्रज्वलित धूनी में लावा (लाह्या), कपूर, समिधा अर्पित की जाती है। धूनीमाता को हल्दी-कुमकुम अर्पण कर उनकी ओटी भरी जाती है। रात्रि के समय धूनीमाता को शांत कर दिया जाता है। रामरक्षा, हनुमान चालिसा एवं अनिरुद्ध चालिसा के साथ उत्सव का समापन होता है।

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अश्वत्थ मारुति पूजा के दिन कैसे करें पीपल की पूजा

  • इस दिन पीपल के पेड़ को जल चढ़ाये और उसके बाद नीचे सरसों तेल का दीपक जलाए।
  • उसके बाद पीपल के वृक्ष की तीन बार परिक्रमा करें।
  • उसके बाद उस पीपल के पेड़ से कुछ पत्ते तोड़कर घर ले आएं और इनको गंगाजल से धो लें।
  • अब पानी में हल्दी डालकर एक गाढ़ा घोल तैयार करें और दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से इस घोल को लेकर पीपल के पत्‍ते पर ह्रीं लिखें।
  • अब अपने घर के पूजास्थल पर इसे ले जाकर रखें और धूप-बत्ती आदि से इसकी पूजा करें।
  • अपने ईष्ट देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें कि आपकी मनोकामना पूर्ण हो।
  • अगर आपके घर में पूजा स्थल ना हो तो किसी साफ स्थान पर चटाई बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं।
  • किसी साफ प्लेट में इस पत्ते को रखें और उसी प्रकार धूप बत्ती दिखाते हुए पूजा करें।

पीपल की परिक्रमा का है आज विशेष दिन

इस दिन पीपल वृक्ष की नित्य जल चढ़ाने और तीन बार परिक्रमा करने से दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। और पीपल के दर्शन और पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।

अश्वत्थ मारुति के उपाय

हिन्दू मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि अश्वत्थ मारुति पूजा करने से व्यक्ति को रोग-दोष से मुक्ति मिलती है और वह शारीरिक रूप से सेहतमंद और मजबूत रहता है।

वहीं रामचरित मानस के रचनाकार तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के एक श्लोक में लिखा है, “नासै रोग हरै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलवीरा। अर्थात जो व्यक्ति हनुमान जी आराधना, उनका सुमिरन करता है तो पवनपुत्र हनुमान लला उनके सारे शारीरिक कष्टों को हर लेते हैं।”

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