गणपति नामाष्टकं स्तोत्र | Ganapati Naam Ashtakam Stotram Lyrics, Meaning & PDF श्री गणपती नामाष्टक स्तोत्र भगवान श्री गणेश जी का अत्यंत प्रभावशाली स्त्रोत है। केवल इसके पढ़ने व स्मरण मात्र से सभी संकटों का नाश हो जाता है। जो भी जातक Sri Ganapati Naam Ashtakam Stotram का प्रतिदिन पाठ करता है उसे सभी परेशानी से मुक्ति मिलती है। और उस जातक की सारी चिन्ताएं समाप्त हो जाती है। जो भी जातक श्री गणपती नामाष्टक स्तोत्र का नियम रूप से रोजाना पाठ करता है।
उस जातक की समस्त मनोकामनाए पूर्ण हो जाती है। उस जातक के सब काम किसी भी रुकावट के साथ पूर्ण होते है। Sri Ganapati Naam Ashtakam Stotram का जो भी जातक प्रतिदिन पाठ करता है उसके समस्त प्रकार के संकटो का नाश हो जाता है और श्री गणेश जी कि कृपा एवं सुख समृद्धि कि प्राप्ति होती है। Sri Ganapati Naam Ashtakam Stotram आदि के बारे में बताने जा रहे हैं।
हर संकट दूर करने वाला गणपति नामाष्टकं स्तोत्र | Ganapati Naam Ashtakam Stotram PDF Download in Sanskrit & Hindi
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विष्णुरुवाच
गणेशमेकदन्तं च हेरम्बं विघ्ननायकम् I
लम्बोदरं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं गुहाग्रजम् I
नामाष्टार्थ च पुत्रस्य श्रुणु मातर्हरप्रिये I
स्तोत्राणां सारभूतं च सर्वविघ्नहरं परम् II १ II
ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचकः I
तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम् I
एकशब्दः प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचकः I
बलं प्रधानं सर्वस्मादेकदन्तं नमाम्यहम् II २ II
दिनार्थवाचको हेश्च रम्बः पालकवाचकः I
परिपालकं दिनानां हेरम्बं प्रणमाम्यहम् I
विपत्तिवाचको विघ्नो नायकः खण्डनार्थकः I
विपत्खण्डनकारकं नमामि विघ्ननायकम् II ३ II
विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यैर्यस्य लम्बोदरं पुरा I
पित्रा दतैश्च विविधैर्वन्दे लम्बोदरं च तम् I
शूर्पाकारौ च यत्कर्णौ विघ्नवारणकारणौ I
सम्पद्दौ ज्ञानरुपौ च शूर्पकर्णं नमाम्यहम् II ४ II
विष्णुप्रसादपुष्पं च यन्मूर्ध्नि मुनिदत्तकम् I
तद् गजेन्द्रवक्त्रयुतं गजवक्त्रं नमाम्यहम् I
गुहस्याग्रे च जातोSयमाविर्भूतो हरालये I
वन्दे गुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम् II ५ II
एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभिः संयुतं परम् I
पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं तथा कुरु I
एतन्नामाष्टकं स्तोत्रं नानार्थसंयुतं शुभम् I
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स सुखी सर्वतो जयी II ६ II
ततो विघ्नाः पलायन्ते वैनतेयाद् यथोरगाः I
गणेश्वरप्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम् I
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलां स्त्रियम् I
महाजडः कवीन्द्रश्च विद्दावांश्च भवेद् ध्रुवम् II ७ II
II इति श्रीब्रह्मवैवर्ते गणपतीखण्डे श्रीविष्णुर्प्रोक्तं गणपति नामाष्टकं संपूर्णं II
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