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Annakut Puja 2025: Govardhan Puja Vrat Katha in Hindi PDF | गोवर्धन पूजा व्रत कथा 2025: जब श्रीकृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अहंकार, पढ़ें वह चमत्कारी कथा (PDF)

गोवर्धन पूजा व्रत कथा 2025: जब श्रीकृष्ण ने तोड़ा इंद्र का अहंकार, पढ़ें वह चमत्कारी कथा (PDF) Annakut Puja 2025: Govardhan Puja Vrat Katha in Hindi PDF अन्नकूट पूजा / गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन किया जाता है। अन्नकूट पूजा / गोवर्धन पूजा विधि करने से सभी व्यक्तियों पर श्री कृष्ण जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।

गोवर्धन पूजा व्रत कथा 2025: पढ़ें पूरी कहानी और महत्व | Annakut Puja Vrat Katha PDF Download

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Govardhan Puja Vrat Katha
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👉 कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अन्नकूट पूजा / गोवर्धन पूजा का त्यौहार मनाया जाता हैं। इस साल 2025 में अन्नकूट पूजा / गोवर्धन पूजा अक्टूबर महीने के 22 तारीख वार बुधवार के दिन बनाया जायेगा।

अन्नकूट पूजा कथा 2025: गोवर्धन कहानी व पूजा विधि | Govardhan Puja Vrat Katha PDF in Hindi (Free Download 2025)

गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है. कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था. इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे. श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ”मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। Govardhan Puja Vrat Katha

मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं,  इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। Govardhan Puja Vrat Katha

लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है. तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। Govardhan Puja Vrat Katha

इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी. इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के पर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। Govardhan Puja Vrat Katha

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया. ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा. आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें. इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। Govardhan Puja Vrat Katha

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