Indra Krita Krishna Stuti (from Vishnu Purana) after Govardhan Lila: विष्णुपुराण: इंद्र कृत कृष्ण स्तुति (गोवर्धन लीला) – कथा, अर्थ व PDF श्रीविष्णुपुराणे इन्द्रकृत श्री कृष्ण स्तुति भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित हैं। दी गई श्री कृष्ण स्तुति श्री इन्द्र देव जी द्वारा रचियत हैं। यह Sri Vishnu Puran Indra Kruta Sri Krishna Stuti के अंतर्गत से ली गई हैं। श्रीविष्णुपुराणे इन्द्रकृत श्री कृष्ण स्तुति के बारे में बताने जा रहे हैं।
Indra’s Prayer of Apology to Krishna (Vishnu Purana Version) – Full Lyrics: श्रीविष्णुपुराणे इन्द्रकृत श्री कृष्ण स्तुति
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इन्द्र उवाच:-
कृष्ण कृष्ण शृणुष्वेदं यदर्थमहमागतः।
त्वत्समीपं महाबाहो नैतच्चिन्त्यं त्वयान्यथा॥१॥
भारावतरणार्थाय पृथिव्याः पृथिवीतले।
अवतीर्णॊऽखिलाधार त्वमेव परमेश्वर ॥२॥
मखभंगविरोधेन मया गोकुलनाशकाः।
समादिष्टा महामेघास्तैश्चेदं कदनं कृतम्॥३॥
त्रातास्ताश्च त्वया गावस्समुत्पाट्य महीधरम्।
तेनाहं तोषितो वीरकर्मणात्यद्भुतेन ते ॥४।
साधितं कृष्ण देवानामहं मन्ये प्रयोजनम्।
त्वयायमद्रिप्रवरः करेणैकेन यद्धृतः॥५॥
गोभिश्च चोदितः कृष्ण त्वत्सकाशमिहागतः।
त्वया त्राताभिरत्यर्थं युष्मत्सत्कारकारणात् ॥६॥
स त्वां कृष्णाभिषेक्ष्यामि गवां वाक्यप्रचोदितः।
उपेन्द्रत्वे गवामिन्द्रो गोविन्दस्त्वं भविष्यसि ॥७॥
श्रीपराशर उवाच: –
अथोपवाह्यादादाय घण्टामैरावताद्गजात्।
अभिषेकं तया चक्रे पवित्रजलपूर्णया ॥८॥
क्रियमाणेऽभिषेके तु गावः कृष्णस्य तत्क्षणात्।
प्रस्रवोद्भूतदुग्धार्द्रां सद्यश्चक्रुर्वसुन्धराम् ॥९॥
अभिषिच्य गवां वाक्यादुपेन्द्रं वै जनार्दनम्।
प्रीत्या सप्रश्रयं वाक्यं पुनराह शचीपतिः ॥१०॥
गवामेतत्कृतं वाक्यं तथान्यदपि मे शृणु।
यद्ब्रवीमि महाभाग भारावतरणेच्छया ॥११॥
ममांशः पुरुषव्याघ्र पृथिव्यां पृथिवीधरः।
अवतीर्योऽर्जुनो नाम संरक्ष्यो भवता सदा ॥१२॥
भारावतरणे साह्यं स ते वीरः करिषयति।
संरक्षणीयो भवता यथात्मा मधुसूदन ॥१३॥

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