Krishna Chandra Ashtak – Lyrics & Meaning: श्री कृष्णचन्द्र अष्टक – श्री केवल राम प्रणीतं कृत (अर्थ, लिरिक्स व PDF) श्री कृष्ण चन्द्रा अष्टकम भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित हैं। श्री कृष्ण चन्द्रा अष्टकम के बारे में बताने जा रहे हैं।
Krishna Chandra Ashtak Stotram with Meaning: कृष्णचन्द्र अष्टकम् (अर्थ एवं महत्व)
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वनभुवि विहरन्तौ तच्छविं वर्णयन्तौ,
सुहृदमनुसरन्तौ दुर्हृदं सूदयन्तौ ।
उपयमुनमटन्तौ वेणुनादं सृजन्तौ भज,
हृदय हसन्तौ रामकृष्णौ लसन्तौ ॥ १॥
कलयसि भवरीतिं नैव चेद्भूरिभूतिं,
यमकृतनिगृहीतिं तर्हि कृत्वा विनीतिम् ।
जहिहि मुहुरनीतिं जायमानप्रतीतिं कुरु,
मधुरिपुगीतिं रे मनो मान्यगीतिम् ॥ २॥
द्विपपरिवृढदन्तं यः समुत्पाट्य सान्तं,
सदसि परिभवन्तं लीलया हन्त सान्तम् ।
स्वजनमसुखयन्तं कंसमाराद्भ्रमन्तं,
सकलहृदि वसन्तं चिन्तयामि प्रभुं तम् ॥ ३॥
करधृतनवनीतः स्तेयतस्तस्य भीतः,
पशुपगणपरीतः श्रीयशोदागृहीतः ।
निखिलनिगमगीतः कालमायाद्यभीतः ,
कनकसदुपवीतः श्रीशुकादिप्रतीतः ॥ ४॥
सकलजननियन्ता गोसमूहानुगन्ता,
व्रजविलसदनन्ताभीरुगेहेषु रन्ता ।
असुरनिकरहन्ता शक्रयागावमन्ता,
जयति विजयियन्ता वेदमार्गाभिमन्ता ॥ ५॥
सुकृतिविहितसेवो निर्जितानेकदेवो ,
भवविधिकृतसेवः प्रीणिताशेषदेवः ।
स्म नयति वसुदेवो गोकुलं यं मुदे,
वो भवतु स यदुदेवः सर्वदा वासुदेवः ॥ ६॥
करकजधृतशैले प्रोल्लसत्पीतचैले ,
मय् बे चोर्रेच्त् रुचिरनवघनाभे शोभने पद्मनाभे ।
विकचकुसुमपुञ्जे शोभमाने निकुञ्जे,
स्थितवति कुरु चेतः प्रीतिमन्यत्र नेतः ॥ ७॥
विषयविरचिताशे प्राप्तसंसारपाशे- ,
ऽनवगतनिजरूपे सृष्टकर्मण्यपूपे ।
सुकृतकृतिविहीने श्रीहरे भक्तिहीने,
मयि कृतय समन्तौ केवले दीनजन्तौ ॥ ८॥
इति श्रीकेवलरामप्रणीतं श्रीकृष्णचन्द्राष्टकं सम्पूर्णम् ।

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