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Krishna Kesadipadam Varnanam (Narayaneeyam Dasakam 100) – Lyrics & Meaning: श्री कृष्ण केशादिपाद वर्णनं (नारायणीयम्, १००वां दशक) – अर्थ व PDF

Krishna Kesadipadam Varnanam (Narayaneeyam Dasakam 100) – Lyrics & Meaning: श्री कृष्ण केशादिपाद वर्णनं (नारायणीयम्, १००वां दशक) – अर्थ व PDF श्री कृष्ण की शादी पाद वर्णन स्तोत्रम् नारायणीय के अन्तर्गतम् से लिया गया है। Sri Krishna Kesadipadam Varnana Stotram में भगवान श्री कृष्ण जी के विवाह के बारे में बताया गया हैं। श्री कृष्ण की शादी पाद वर्णन स्तोत्रम् के बारे में बताने जा रहे हैं।

नारायणीयम् का १००वां दशक: कृष्ण की शादी पाद वर्णन स्तोत्रम् (अर्थ सहित): Sri Krishna Kesadipadam Varnana Stotram

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Krishna Kesadipadam Varnanam
Krishna Kesadipadam Varnanam

अग्रे पश्यामि तेजो निबिडतरकलायावलीलोभनीयं,

पीयूषाप्लावितोऽहं तदनु तदुदरे दिव्यकैशोरवेषम् ।

तारुण्यारम्भरम्यं परमसुखरसास्वादरोमाञ्चिताङ्गै,

रावीतं नारदाद्यैर्विलसदुपनिषद्सुन्दरीमण्डलैश्च ॥ १ ॥

नीलाभं कुञ्चिताग्रं घनममलतरं संयतं चारुभङ्ग्या,

रत्नोत्तंसाभिरामं वलयितमुदयच्चन्द्रकैः पिञ्छजालैः ।

मन्दारस्रङ्निवीतं तव पृथुकबरीभारमालोकयेऽहं,

स्निग्द्धश्वेतोर्ध्वपुण्ड्रामपि च सुललितां फालबालेन्दुवीथीम् ॥ २ ॥

हृद्यं पूर्णानुकंपार्णवमृदुलहरी चञ्चलभ्रूविलासैः,

आनीलस्निग्द्धपक्ष्मावलि परिलसितं नेत्रयुग्मं विभो ते ।

सान्द्रच्छायं विशालारुणकमलदलाकारमामुग्धतारं,

कारुण्यालोकलीला शिशिरितभुवनं क्षिप्यतां मय्यनाथे ॥ ३ ॥

उत्तुङ्गोल्लासिनासं हरिमणिमुकुरप्रोल्लसद्गण्डपाली,

व्यालोलत् कर्णपाशाञ्चितमकरमणी कुण्डलद्वन्द्वदीप्रम् ।

उन्मीलद्दन्तपङ्क्तिः स्फुरदरुणतरच्छाय बिम्बाधरान्तः,

प्रीतिप्रस्यन्दिमन्दस्मितमधुरतरं वक्त्रमुद्भासतां मे ॥ ४ ॥

बाहुद्वन्द्वेन रत्नाङ्गुलिवलयभृता शोणपाणिप्रवाले,

नोपात्तां वेणुनालीं प्रसृतनखमयूखाङ्गुलीसङ्गशाराम् ।

कृत्वा वक्त्रारविन्दे सुमधुरविकसद्रागमुद्भाव्यमानैः,

शब्दब्रह्मामृतैस्त्वं शिशिरितभुवनैः सिञ्च मे कर्णवीथीम् ॥ ५ ॥

उत्सर्पत्कौस्तुभश्रीततिभिररुणितं कोमलं कण्ठदेशं,

वक्षः श्रीवत्सरम्यं तरलतरसमुद्दीप्तहारप्रतानम् ।

नानावर्णप्रसूनावलिकिसलयिनीं वन्यमालां विलोल,

ल्लोलम्बां लम्बमानामुरसि तव तथा भावये रत्नमालाम् ॥ ६ ॥

अंगे पंचांगरागैरतिशयविकसत्सौरभाकृष्टलोकं,

लीनानेकत्रिलोकीविततिमपि कृशां बिभ्रतं मध्यवल्लीम् ।

शक्राश्मन्यस्त तप्तोज्ज्वलकनकनिभं पीतचेलं दधानं,

ध्यायामो दीप्तरश्मि स्फुटमणिरशनाकिङ्किणी मण्डितं त्वाम् ॥ ७ ॥

ऊरू चारू तवोरू घनमसृणरुचौ चित्तचोरौ रमायाः,

विश्वक्षोभं विशङ्क्य ध्रुवमनिशमुभौ पीतचेलावृताङ्गौ ।

आनम्राणां पुरस्तान्न्यसनधृतस्मस्तार्थपालीसमुद्ग,

च्छायं जानुद्वयं च क्रमपृथुलमनोज्ञे च जङ्घे निषेवे ॥ ८ ॥

मञ्जीरं मञ्जुनादैरिव पदभजनं श्रेय इत्यालपन्तं,

पादाग्रं भ्रान्तिमज्जत् प्रणतजनमनोमन्दरोद्धारकूर्मम्।

उत्तुङ्गाताम्रराजन्नखरहिमकरज्योत्स्नया चाश्रितानाम्,

संताप ध्वान्तहन्त्रीं ततिमनुकलये मङ्गलामङ्गुलीनाम् ॥ ९ ॥

योगीन्द्राणां त्वदङ्गेष्वधिकसुमधुरं मुक्तिभाजां निवासो,

भाक्तानां कामवर्षद्युतरुकिसलयं नाथ ते पादमूलम् ।

नित्यं चित्तस्थितं मे पवनपुरपते कृष्ण कारुण्यसिन्धो,

हृत्वा निश्शेषतापान् प्रदिशतु परमानन्दसन्दोहलक्ष्मीम्  ॥ १० ॥

Krishna Sahasranamam – श्री कृष्ण सहस्रनामम् 1000 नामों का संपूर्ण पाठ – हर संकट से मुक्ति पाने का उपाय

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