Maa Chinnamasta Sadhana Vidhi : महाविद्या माँ छिन्नमस्ता देवी साधना कैसे करें आज हम आपको महाविद्या माँ छिन्नमस्ता देवी साधना विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। यह तो आप सब जानते है की तंत्र की दस महाविद्या में छिन्नमस्ता साधना एक अत्यंत ही उच्चकोटि की साधना मानी जाती हैं। दस महाविद्याओं में पांचवें स्थान पर छिन्नमस्ता साधना मानी जाती हैं। इस साधना को करने से के बाद साधक के जीवन में बहुत ही समस्याओं का स्वयं ही निवारण हो जाता हैं। हमारे द्वारा बताये जा रहे महाविद्या माँ छिन्नमस्ता देवी साधना विधि को जानकर आप भी महाविद्या छिन्नमस्ता साधना पूरी कर सकते हैं।
Maa Chinnamasta Sadhana कब करें
महाविद्या माँ छिन्नमस्ता साधना को करने के लिए साधक की समस्त सामग्री में विशेष रूप से सिद्धि युक्त होनी चाहिये। यदि ऐसा नही हुई तो आप यह साधन नही कर सकोंगे। महाविद्या माँ छिन्नमस्ता साधना के साधक को सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “छिन्नमस्ता यंत्र” और “काली हकीक” की माला होनी चाहिए। महाविद्या माँ छिन्नमस्ता साधना आप नवरात्रि के दिन से शुरू कर सकते हैं। माँ छिन्नमस्ता साधना का समय रात्रि में 10 बजे प्रारम्भ कर सकते हैं पर यह बात का जरुर ध्यान रखें की आपकी साधना सुबह 3 या 4 बजे से पहले पहले हो जानी चाहिए।
Maa Chinnamasta Sadhana करने की विधि
महाविद्या माँ छिन्नमस्ता देवी साधना वाले साधक को स्नान करके शुद्ध काले वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में दक्षिण दिशा की तरफ़ मुख करके काले ऊनी आसन पर बैठ जाए। उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर काले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर प्राण प्रतिष्ठित सिद्ध छिन्नमस्ता यंत्र और माता का चित्र रखकर कुंकुंम, पुष्प और अक्षत चढ़ायें उसके सामने दीपक और लोबान धुप लगाकर सामान्य रूप से पूजा कर लें। और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े:
ॐ अस्य शिरशछन्ना मंत्रस्य, भैरव ऋषि:, सम्राट छन्द:, छिन्नमस्ता देवता, ह्रीं ह्रीं बीजम्, स्वाहा शक्ति:, अभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।
ऋष्यादि न्यास : बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं। ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है। मंत्र :
ॐ भैरव ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )
सम्राट छन्दसे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )
छिन्नमस्ता देवतायै नम: हृदय ( हृदय को स्पर्श करें )
ह्रीं ह्रीं बीजाय नम: गुह्ये ( गुप्तांग को स्पर्श करें )
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें )
विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )
कर न्यास : अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है ।
ॐ आं खड्गाय स्वाहा अंगुष्ठयो:।
ॐ ईं सुखड्गाय स्वाहा तर्जन्यै।
ॐ ऊं वज्राय स्वाहा मध्यमाभ्यो:।
ॐ ऐं पाशाय स्वाहा अनामिकाभ्यो:।
ॐ औं अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठिकभ्यो:।
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतल कर पृष्ठभ्यो:।
ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं। ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है। मंत्र :
ॐ आं खड्गाय हृदयाय नम: ( हृदय को स्पर्श करें )
ॐ ईं सुखड्गाय शिरसे स्वाहा ( सर को स्पर्श करें )
ॐ ऊं वज्राय शिखायै वषट् ( शिखा को स्पर्श करें )
ॐ ऐं पाशाय कवचाय हुम् ( दोनों कंधों को स्पर्श करें )
ॐ औं अंकुशाय नेत्रत्रयाय वौषट् ( दोनों नेत्रों को स्पर्श करें )
अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं अस्त्राय फट् ( सर के ऊपर हाथ सीधा हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं )
ध्यान : इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती छिन्नमस्ता का ध्यान करके, छिन्नमस्ता माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर छिन्नमस्ता महाविद्या मन्त्र का जाप करें।
भावन्मण्डल मध्यगांगिज शिरशिछन्नंविकीर्णाकम्।
सफोरास्यं प्रतिपद्गलात्स्व रुधिरं वामे करेविभ्रतीम्।।
याभासक्त रति रमरोपरि गतां सख्यो निजे डाकिनी।
वर्णिनयौ परि दृश्य मोद कलितां श्रीछिन्नमस्तां भजे।।
ऊपर दिया गया पूजन सम्पन्न करके सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित “हकीक माला” की माला से नीचे दिए गये मंत्र की 114 माला 11 दिन, या 64 माला 21 दिनों तक जप करें। और मंत्र उच्चारण करने के बाद छिन्नमस्ता कवच का पाठ करें।
Maa Chinnamasta Sadhana सिद्धि मंत्र
।। श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।
प्रतिदिन मन्त्र जप के बाद में छिन्नमस्ता देवी के लिए खीर, सूखा मेवा नैवेध्य में रखना चाहिए और नीचे लिखा मन्त्र बोलकर देवी को भोग लगाना चाहिए।
नैवेध्य मंत्र:
।। ॐ सिद्धिप्रदे वर्णनीये सर्वसिद्धिप्रदे डाकिनीये छिन्नमस्ते देवि एहि एहि इमं बलिं ग्रह ग्रह मम सिद्धिं कुरु कुरु हूं हूं फट स्वाहा ।।
उपरोक्त सोलह अक्षरों का छिन्नमस्ता का मंत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसका मंत्र समुच्चय इस प्रकार किया गया है:
- “श्रीं” यह लक्ष्मी बीज है।
- “ह्रीं” यह लज्जा बीज है, जोकि जीवन में सभी दृष्टियों से उन्नति में सहायक है।
- “क्लीं” यह मनोभव बीज है, जोकि समस्त पापों का नाश करने वाला है।
- “ऐं” यह जीवन में समस्त गुणों को देने वाला और संजीवनी विद्या प्रदान करने वाला बीज है।
- “वं” यह वरुण देव का प्रतीक है, जिससे स्वयं के शरीर पर नियंत्रण रहता है और अपने स्वरूप को कई रूपों में विभक्त कर सकता है।
- “जं” यह इन्द्र का प्रतीक है, जिससे स्वयं के शरीर पर नियंत्रण रहता है और अपने स्वरूप को कई रूपों में विभक्त कर सकता है।
- “रं” यह रेफ युक्त है, जोकि अग्नि देव का प्रतीक है, यह बीज जीवन की पूर्णता का प्रतीक है।
- “वं” यह पृथ्वी पति बीज है, जिससे की साधक पूरी पृथ्वी पर नियंत्रण करने में समर्थ का प्रतीक है।
- ‘ऐं” यह त्रिपुरा देवी का प्रतीक है।
- “रं” यह त्रिपुर सुन्दरी का बीजाक्षर है।
- ‘ओं” यह सदैव त्रैलोक्य विजयिनी देवी का आत्म रूप प्रतीक है।
- “चं” चन्द्र का प्रतीक है जोकि पूरे शरीर को नियंत्रित, सुन्दर व सुखी रखता है।
- ‘नं” यह गणेश का प्रतीक है जोकि ऋद्धि-सिद्धि देने में समर्थ है।
- “ईं” यह साक्षात् कमला का बीजाक्षर है।
- “यं’ सरस्वती का बीज है, जिससे साधक को वाक् सिद्धि होती है।
- “हुं” हुं यह माला युग्म बीज है, जो आत्म और प्रकृति का संगम है, इससे साधक सम्पूर्ण प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करता है।
- “फट्” यह वैखरी प्रतीक है, जिससे साधक किसी भी क्षण मनोवांछित कार्य सम्पन्न कर सकता है।
- “स्वा” यह कामदेव का बीज है, जिससे साधक का शरीर सुन्दर, स्वस्थ वा आकर्षक बन जाता है।
- “हा” यह रति बीज है, जोकि पूर्ण पौरुष प्रदान करने में समर्थ है।
इस प्रकार इन सोलह अक्षरों से स्पष्ट होता है कि मंत्र का प्रत्येक अक्षर विशेष शक्तिशाली है और इस एक ही मंत्र से भौतिक एवं आध्यात्मिक सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।
मंत्र उच्चारण करने के छिन्नमस्ता कवच पढ़ें. दी गई यह महाविद्या माँ छिन्नमस्ता साधना 11 या 21 दिनों की साधना है। माँ छिन्नमस्ता साधना करते समय साधक पूर्ण आस्था के साथ नियमों का पालन जरुर करें और नित्य जाप करने से पहले ऊपर दी गई संक्षिप्त पूजन विधि जरुर करें। साधक माँ छिन्नमस्ता साधना करने की जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह या 21 दिनों के बाद मन्त्रों का जाप करने के बाद दिए गये मन्त्र जिसका आपने जाप किया हैं उस मन्त्र का दशांश ( 10% भाग ) हवन अवश्य करें।
हवन में कमल गट्टे, पंचमेवा, काले तिल, पलाश पुष्प या बिल्व पुष्पों, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें। हवन के बाद छिन्नमस्ता यंत्र को अपने घर से दक्षिण दिशा की तरफ़ किसी काली मंदिर में दान कर दें और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें। ऐसा करने से साधक की माँ छिन्नमस्ता साधना पूर्ण हो जाती हैं। और साधक के ऊपर माँ छिन्नमस्ता देवी की कृपा सदैव बनी रही हैं। माँ छिन्नमस्ता साधना करने से साधक के जीवन में शत्रु, भय, रोग, बाधा जैसी समस्या नहीं रहती हैं।