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Artatrana Parayana Gangadhar Ashtakam : आर्त त्राण परायण गंगाधर अष्टकम

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Artatrana Parayana Gangadhar Ashtakam
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Artatrana Parayana Gangadhar Ashtakam : आर्त त्राण परायण गंगाधरा अष्टकम भगवान श्री शिव जी को समर्पित हैं। आर्त त्राण परायण गंगाधरा अष्टकम आदि के बारे में बताने जा रहे हैं।

आर्त त्राण परायण गंगाधर अष्टकम Artatrana Parayana Gangadhar Ashtakam

क्षीराम्भोनिधिमन्थनोद्भवविषात् संदह्यमानान् सुरान्,

ब्रह्मादीनवलोक्य यः करुणया हालाहलाख्यं विषम् ।

निश्शंकं निजलीलया कबलयन् लोकान् ररक्षादरात्,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ १ ॥

क्षीरं स्वादु निपीय मातुलगृहे गत्वा स्वकीयं गृहं,

क्षीरालाभवशेन खिन्नमनसे घोरं तपः कुर्वते ।

कारुण्यादुपमन्यवे निरवधिं क्षीरांबुधिं दत्तवान्,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ २ ॥

मृत्युं वक्षसि ताडयन् निजपदध्यानैकभक्तं मुनिं,

मार्कण्डेयमपालयत् करुणया लिङ्गाद्विनिर्गत्य यः ।

नेत्राम्भोजसमर्पणेन हरयेऽभीष्टं रथांगं ददौ,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ३ ॥

व्यूढं द्रोणजयद्रथादिरथिकैः सैन्यं महत् कौरवं,

दृष्ट्वा कृष्णसहायवन्तमपि तं भीतं प्रपन्नार्तिहा ।

पार्थं रक्षितवान् अमोघविषयं दिव्यास्त्रमुद्बोधयन्

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ४ ॥

बालं शैवकुलोद्भवं परिहसत् स्वज्ञातिपक्षाकुलं,

खिद्यन्तं तव मूर्ध्नि पुष्पनिचयं दातुं समुद्यत्करम् ।

दृष्ट्वाऽऽनम्य विरिञ्चिरम्यनगरे पूजां त्वदीयं भजन्,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ५ ॥

संत्रस्तेषु पुरा पुरासुरभयात् इन्द्रादिबृन्दारके,

ष्वारूढो धरणीरथं श्रुतिहयं कृत्वा मुरारिं शरम् ।

रक्षन् यः कृपया समस्तविबुधान् जित्वा सुरारीन् क्षणात्,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ६ ॥

श्रौतस्मार्तपथे पराङ्मुखमपि प्रोद्यन्महापातकं,

विश्वातीतमपि त्वमेव गतिरित्यालापयन्तं सकृत् ।

रक्षन् यः करुणापयोनिधिरिति प्राप्तप्रसिद्धिः पुरा,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ७ ॥

गांगं वेगमवाप्य मान्यविबुधैः वोढुं पुरा याचितो,

दृष्ट्वा भक्तभगीरथेन विनुतो रुद्रो जटामण्डले ।

कारुण्यादवनीतले सुरनदीं आपूरयन् पावनीं,

आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ८ ॥

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