भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (PDF) | Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram Lyrics, Meaning & Benefits Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram पढ़ने से साधक को अपने जीवन में में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। साधक Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram स्तोत्रम् पढ़ने से दरिद्रता को समृद्धि में बदला जा सकता हैं। साधक को कभी भी असाध्य रोग नही होता हैं। Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram पढ़ने से साधक की कुंडलिनी जागरण होने लगती हैं।
The Original Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram (from Sacred Tantras) | ज्ञान और सफलता के लिए पढ़ें भुवनेश्वरी के 108 नाम (संपूर्ण नामावली स्तोत्रम्)
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Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram PDF Download & Lyrics | श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम जीवन में होगी धन और सम्मान की वर्षा के साथ पाएं राजयोग और आकर्षण शक्ति
कैलासशिखरे रम्ये नानारत्नोपशोभिते ।
नरनारीहितार्थाय शिवं पप्रच्छ पार्वती ॥ १॥
देव्युवाच –
भुवनेशीमहाविद्यानाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा ॥ २॥
ईश्वर उवाच –
शृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं शुभम् ।
सहस्रनाम्नामधिकं सिद्धिदं मोक्षहेतुकम् ॥ ३॥
शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं समाहितैः ।
त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः सर्वकामफलप्रदम् ॥ ४॥
अस्य श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य शक्तिरृषिः
गायत्री छन्दःभुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसाधने जपे विनियोगः ।
ॐ महामाया महाविद्या महाभोगा महोत्कटा ।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥ ५॥
वागीश्वरी योगरूपा योगिनीकोटिसेविता ।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला ॥ ६॥
हिङ्गुला च विलासी च ज्वालिनी ज्वालरूपिणी ।
ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्गप्रदायिनी ॥ ७॥
वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुलपूजिता ।
वामाङ्गा वामचारा च वामदेवप्रिया तथा ॥ ८॥
डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका ।
पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती ॥ ९॥
भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी ।
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्डवासिनी ॥ १०॥
उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्मरागिणी ।
इन्द्राणी ब्रह्म चाण्डाली चण्डिका वायुवल्लभा ॥ ११॥
सर्वधातुमयीमूर्तिर्जलरूपा जलोदरी ।
आकाशी रणगा चैव नृकपालविभूषणा ॥ १२॥
नर्मदा मोक्षदा चैव धर्मकामार्थदायिनी ।
गायत्री चाथ सावित्री त्रिसन्ध्या तीर्थगामिनी ॥ १३॥
अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा ।
पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्तिस्वरूपिणी ॥ १४॥
सुरारिनाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला ।
अनला अर्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥ १५॥
लज्जा सरस्वती विद्या भवानी पापनाशिनी ।
नागपाशधरा मूर्तिरगाधा धृतकुण्डला ॥ १६॥
क्षत्ररूपा क्षयकरी तेजस्विनी शुचिस्मिता ।
अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भुरूपा मनस्विनी ॥ १७॥
मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया सदा ।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा ॥ १८॥
य इदं पठते भक्त्या शृणुयाद्वा समाहितः ।
अपुत्रो लभते पुत्रं निर्धनो धनवान् भवेत् ॥ १९॥
मूर्खोऽपि लभते शास्त्रं चोरोऽपि लभते गतिम् ।
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयी भवेत् ॥ २०॥
वैश्यस्तु धनवान्भूयाच्छूद्रस्तु सुखमेधते ।
अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ॥ २१॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या न ते वै दुःखभागिनः ।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकम् ॥ २२॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्गलोके च पूजिताः ।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवाः पन्नगा गरुडं यथा ॥
शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्रविलोकनात् ॥ २३॥
इति श्रीरुद्रयामले देवीशङ्करसंवादे भुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥
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