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Bhuvaneshwari Jayanti 2025: Complete Puja Vidhi, Story & Significance भुवनेश्वरी जयंती पूजा विधि, व्रत कथा, मुहूर्त और महत्व

Bhuvaneshwari Jayanti 2025: Complete Puja Vidhi, Story & Significance भुवनेश्वरी जयंती पूजा विधि, व्रत कथा, मुहूर्त और महत्व भुवनेश्वरी देवी को मां आदि शक्ति का एक रूप माना जाता है। इतना ही नहीं भुवनेश्वरी देवी को प्रकृति की माता के रूप में पूजा होती है। सभी मनुष्य का पोषण करने वाली भुवनेश्वरी देवी का स्वरूप कांतिपूर्ण और सौम्य है। देवी के मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है। तीन नेत्रों से युक्त् मां भुवनेश्वरी अपने तेज से पूरे लोक को तेजायमान करती है।

मां की आराधना से धन, धान्य , वैभव और कई उत्तम विद्याएं भी प्राप्त होती है। यही वजह है कि मां भुवनेश्वरी देवी की जयंती का भी विशेष महत्व है। इस पोस्ट की सहायता से आप भी भुवनेश्वरी जयंती के दिन पूजा विधि सही तरह से कर सकते है। FreeUpay.in द्वारा बताये जा रहे भुवनेश्वरी जयंती पूजा विधि (Bhuvaneshwari Jayanti Puja Vidhi) को पढ़कर आप भी बहुत आसन तरीके माँ भुवनेश्वरी जयंती की पूजा कर सकोंगे।

Bhuvaneshwari Jayanti Puja for Knowledge & Success: A Step-by-Step Guide | ज्ञान, धन और सफलता के लिए भुवनेश्वरी जयंती: जानें सही पूजा विधि

हमारी वेबसाइट FreeUpay.in (फ्री उपाय.इन) में रोजाना आने वाले व्रत त्यौहार की जानकारी के अलावा मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, साधना, व्रत कथा, ज्योतिष उपाय, लाल किताब उपाय, स्तोत्र आदि महत्वपूर्ण जानकारी उबलब्ध करवाई जाएगी सभी जानकारी का अपडेट पाने के लिए दिए गये हमारे WhatsApp Group Link (व्हात्सप्प ग्रुप लिंक) क्लिक करके Join (ज्वाइन) कर सकते हैं।

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Bhuvaneshwari Jayanti
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भुवनेश्वरी जयंती कब मनाई जाती हैं?

परिवर्तिनी एकादशी यानि जल झुलनी एकादशी के अगले दिन भुवनेश्वरी जयंती मनाई जाती हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वाद्शी तिथि के दिन भुवनेश्वरी जयंती का पर्व मनाया जाता हैं।

Bhuvaneshwari Jayanti 2025 Date: भुवनेश्वरी जयंती कब है 2025?

इस साल 2025 में भुवनेश्वरी जयंती का पर्व 04 सितम्बर, वार गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।

Bhuvaneshwari Jayanti Puja Muhurat 2025: भुवनेश्वरी जयंती 2025: पूजा शुभ मुहूर्त

सूर्योदय से सुबह 07:42 मिनट तक,

सुबह 10:51 मिनट से संध्या 03:35 मिनट तक,

संध्या 05:09 मिनट से संध्या 06:44 मिनट तक,

भुवनेश्वरी जयंती की सरल पूजा विधि | Bhuvaneshwari Puja Vidhi at Home

इस दिन जातक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े धारण करें। इसके बाद शिव मंदिर जाकर देवी का दशोपचार पूजन करें। उसके बादकपूर जलाकर धूपबत्ती लगाये और घी का दीपक जलाए उसके बाद सफेद रंग के पुष्प, अखंडित चावल, चंदन, दूध, शहद व इत्र अर्पित करें। इसके बाद देवी माँ को मावे का भोग लगाकर नीचे बताये गये मंत्र की एक माला का जाप करें।

भुवनेश्वरी जयंती पूजा मंत्र: Bhuvaneshwari Jayanti Puja Mantra

“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः”

Bhuvaneshwari Jayanti Puja समाप्‍त करने के बाद देवी माँ को लगाये गये भोग किसी स्‍त्री को भेंट कर दें।

भुवनेश्वरी जयंती पूजा महत्व

हमारे हिन्दू धर्म के मान्यताओं के अनुसार भुवनेश्वरी का अर्थ “ब्रह्मांड की रानी” से है। वह जो पूरे ब्रह्मांड पर राज करती हो। और अपनी इच्‍छा अनुसार ब्रह्मांड की चीजों को नियंत्रण करती हैं। तथा पुरे ब्रह्मांड को एक कोमल पुष्प की तरह संभालती हो तथा ब्रह्मांड की रक्षा करती हैं। हमारे धार्मिक शास्त्रों में देवी भुवनेश्वरी माता को आदिशक्ति का स्वरूप माना जाता है। साथ ही साथ यह दस महाविद्याओ में से चौथी महाविद्या की प्रतीक माना जाता है।

कहा जाता आभूषण के तौर पर देवी प्राणियों को धारण करती हैं। यही कारण है देवी शक्ति की तरह पूरे ब्राह्मांड इनकी पूजा करता है। भुवनेश्वरी माता को राज राजेश्वरी भी कहा जाता है। माँ आदिशक्ति का ये रूप बहुत दयालु है और भक्तों पर कृपा करने वाला है। जिस भक्त पर मां की कृपा होती है वो मोक्ष प्राप्त करता है।

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भुवनेश्वरी जयंती व्रत कथा | Bhuvaneshwari Jayanti Katha in Hindi

एक बार मधु कैटभ नाम के दो दैत्य थे.जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था. सारे देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु निंद्रा में लीन थे, तब सब देवता ने मिलकरभगवान विष्णु की स्तुति की और उनसे प्रार्थना करने लगे कि वह निंद्रा को त्याग कर मधु कैटभ को मारकर उनकी रक्षा करें. भगवान विष्णु निंद्रा को त्याग कर जाग गए।

उन्होंने 5000 वर्षों तक मधु कैटभ से युद्ध किया और जब लगातार अकेले युद्ध करने के कारण भगवान विष्णु थक गए तो उन्होंने योग माया अद्याशक्ति को सहायता के लिए बुलाया, तब देवी ने उन्हें कहा कि वह मधु कैटभ को अपनी माया से मोहित कर देंगी. जब योग माया ने मधु कैटभ को मोहित कर दिया तो दोनों भाई भगवान विष्णु से कहने लगे कि हे प्रभु हमारा वध ऐसे स्थान पर करें जहां ना तो जल और ना स्थल हो।

तब भगवान विष्णु ने मधु कैटभ को अपनी जंघा पर रखकर और सुदर्शन चक्र से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया. इस प्रकार मधु कैटभ का वध हुआ भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश ने देवी अद्याशक्ति योगनिंद्रा महामाया की स्तुति की, तब अद्याशक्ति ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को सृजन, विष्णु जी को पालनकर्ता और भगवान शंकर को संहार का देव चुना।

ब्रह्माजी ने देवी आदिशक्ति से प्रश्न किया कि अभी तो चारों तरफ जल ही जल है पंचतत्व ,गुण और इंद्रियां कुछ भी नहीं है,तीनों देव शक्तिहीन है,तब देवी ने मुस्कुराते उस स्थान पर एक सुंदर विमान प्रस्तुत किया और तीनों देवताओं को विमान पर बैठाकर कहा कि वह अब अद्भुत चमत्कार देखें. तीनों देवता विमान पर विराजमान हो गए और वह विमान आकाश में उड़ने लगा और ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां जल नहीं था, वह विमान सागर तट पर जा पहुंचा जहां पर अत्यंत सुंदर दृश्य था।

वह स्थान अनेक प्रकार की पुष्प वाटिकाओं से सुसज्जित था और तीनों देवताओं ने देखा कि एक पलंग पर दिव्यांगना बैठी हुई है उस देवी ने रक्तपुष्पों की माला और रक्ताम्बर धारण कर रखा है वर पाश अंकुश और अभय मुद्रा धारण करे हुए हैं देवी भुवनेश्वरी ने त्रिदेव को दर्शन दिए ,देवी भुवनेश्वरी की कांति सहस्त्र उदित सूर्य के प्रकाश के समान थी।

यह सब देख भगवान विष्णु ने कहा कि यह साक्षात देवी जगदंबा महामाया है तीनों देवों ने मां भुवनेश्वरी की स्तुति करी और उनके चरणों के निकट गए तब उन्होंने देखा कि देवी के चरण कमल के नख में संपूर्ण जगत व्याप्त है और वह संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी है।

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