Jagannatha Ashtakam : Jagannathastakam : जगन्नाथ अष्टकम भगवान जगन्नाथ जी को समर्पित हैं। श्री जगन्नाथ अष्टकम को नियमित रूप से पाठ करने से जातक की मन की शांति व् सारी बुराईयों नष्ट हो जाती हैं। और इसके साथ साथ जगन्नाथ अष्टकम का पाठ करने से जातक स्वस्थ, धनी और सुखी समृद्ध की प्राप्ति होती हैं।
श्री जगन्नाथ अष्टकम || Sri Jagannatha Ashtakam
कदाचि त्कालिन्दी तटविपिनसङ्गीतकपरो
मुदा गोपीनारी वदनकमलास्वादमधुपः
रमाशम्भुब्रह्मा मरपतिगणेशार्चितपदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 1 ॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर कटाक्षं विदधते
सदा श्रीमद्बृन्दा वनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 2 ॥
महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे
वसन्प्रासादान्त -स्सहजबलभद्रेण बलिना
सुभद्रामध्यस्थ स्सकलसुरसेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 3 ॥
कथापारावारा स्सजलजलदश्रेणिरुचिरो
रमावाणीसौम स्सुरदमलपद्मोद्भवमुखैः
सुरेन्द्रै राराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 4 ॥
रथारूढो गच्छ न्पथि मिलङतभूदेवपटलैः
स्तुतिप्रादुर्भावं प्रतिपद मुपाकर्ण्य सदयः
दयासिन्धु र्भानु स्सकलजगता सिन्धुसुतया
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 5 ॥
परब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोनन्तशिरसि
रसानन्दो राधा सरसवपुरालिङ्गनसुखो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 6 ॥
न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकितां भोगविभवं
न याचे2 हं रम्यां निखिलजनकाम्यां वरवधूं
सदा काले काले प्रमथपतिना चीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 7 ॥
हर त्वं संसारं द्रुततर मसारं सुरपते
हर त्वं पापानां वितति मपरां यादवपते
अहो दीनानाथं निहित मचलं निश्चितपदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 8 ॥
॥ इति जगन्नाथाकष्टकं ॥
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