Krishna Lahari Stotra – Lyrics & Meaning: श्री कृष्ण लहरी स्तोत्र (अर्थ, लिरिक्स व PDF) श्री कृष्ण लहरी स्तोत्रम् भगवान श्री कृष्ण जी समर्पित हैं। श्री कृष्ण लहरी स्तोत्रम् का पाठ विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी या भगवान श्री कृष्ण जी से संबंधित अन्य कई त्योहारों पर किया जाता हैं। श्री कृष्ण लहरी स्तोत्रम् का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं। श्री कृष्ण लहरी स्तोत्रम् के बारे में बताने जा रहे हैं।
Krishna Lahari Stotram with Meaning: श्री कृष्ण लहरी स्तोत्रम्
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कदा बृन्दारण्ये विपुलयमुनातीरपुलिने
चरन्तं गोविन्दं हलधरसुदामादिसहितम् ।
अहो कृष्ण स्वामिन् मधुरमुरली मोहन विभो
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ १ ॥
कदा कालिन्दीये हरिचरणमुद्राङ्किततटे
स्मरन् गोपीनाथं कमलनयनं सस्मितमुखम् ।
अहो कृष्णानन्दाम्बुजवदन भक्तैकसुलभ
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ २ ॥
कदाचित् खेलन्तं व्रजपरिसरे गोपतनयैः
कथञ्चित् संप्राप्तं किमपि भजतं कञ्जनयनम् ।
अये राधे किल हरसि रसिके कञ्चुकयुगं
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ ३ ॥
कदाचित् गोपीनां हसितचकितं स्निग्धनयनं
स्थितं गोपीवृन्दे नटमिव नटन्तं सुललितम् ।
सुराधीशैः सर्वैः स्तुतपदममुं श्रीहरिमिति
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ ४ ॥
कदाचित् कालिन्द्यां तटतरुकदंबे स्थितममुं
स्मयन्तं साकूतं हृतवसनगोपीस्तनतटम् ।
अहो शक्रानन्दाम्बुजवदन गोवर्द्धनधर
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ ५ ॥
कदाचित् कान्तारे विजयसखमिष्टं नृपसुतं
वदन्तं पार्थेन्द्रं नृपसुत सखे बन्धुरिति च ।
भ्रमन्तं विश्रान्तं श्रितमुरसि रम्यं हरिमहो
प्रसीदेत्याक्रोशन् निमिषमिव नेष्यामि दिवसान् ॥ ६ ॥

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