Krishna Manasa Puja Stotram: Lyrics, Meaning & How-to Guide: श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् – अर्थ, विधि और लिरिक्स (PDF) श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित हैं। Sri Krishna Manasa Puja Stotram का पाठ विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी या भगवान श्री कृष्ण जी से संबंधित अन्य कई त्योहारों पर किया जाता हैं। श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं। इस श्री कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् के रचियता श्री शंकराचार्य जी हैं। Sri Krishna Manasa Puja Stotram के बारे में बताने जा रहे हैं।
How to Do Krishna Manasa Puja (Mental Worship) with Full Stotram: श्री शंकराचार्य कृत कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् (अर्थ सहित)
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हृदम्भोजे कृष्णस्सजलजलदश्यामलतनुः
सरोजाक्षः स्रग्वी मकुटकटकाद्याभरणवान् ।
शरद्राकानाथप्रतिमवदनः श्रीमुरलिकां
वहन् ध्येयो गोपीगणपरिवृतः कुङ्कुमचितः ॥ १ ॥
पयोम्भोधेर्द्वीपान्मम हृदयमायाहि भगवन्
मणिव्रातभ्राजत्कनकवरपीठं भज हरे ।
सुचिह्नौ ते पादौ यदुकुलज नेनेज्मि सुजलैः
गृहाणेदं दूर्वादलजलवदर्घ्यं मुररिपो ॥ २ ॥
त्वमाचामोपेन्द्र त्रिदशसरिदम्भोऽतिशिशिरं
भजस्वेमं पञ्चामृतरचितमाप्लावमघहन् ।
द्युनद्याः कालिन्द्या अपि कनककुम्भस्थितमिदं
जलं तेन स्नानं कुरु कुरु कुरुष्वाचमनकम् ॥ ३ ॥
तटिद्वर्णे वस्त्रे भज विजयकान्ताधिहरण
प्रलम्बारिभ्रातः मृदुलमुपवीतं कुरु गले ।
ललाटे पाटीरं मृगमदयुतं धारय हरे
गृहाणेदं माल्यं शतदलतुलस्यादिरचितम् ॥ ४ ॥
दशाङ्गं धूपं सद्वरद चरणाग्रेऽर्पितमिदं
मुखं दीपेनेन्दुप्रभ विरजसं देव कलये ।
इमौ पाणी वाणीपतिनुत सुकर्पूररजसा
विशोध्याग्रे दत्तं सलिलमिदमाचाम नृहरे ॥ ५ ॥
सदातृप्ताऽन्नं षड्रसवदखिलव्यञ्जनयुतं
सुवर्णामत्रे गोघृतचषकयुक्ते स्थितमिदम् ।
यशोदासूनो तत् परमदययाऽशान सखिभिः
प्रसादं वाञ्छद्भिः सह तदनु नीरं पिब विभो ॥ ६ ॥
सचूर्णं ताम्बूलं मुखशुचिकरं भक्षय हरे
फलं स्वादु प्रीत्या परिमलवदास्वादय चिरम् ।
सपर्यापर्याप्त्यै कनकमणिजातं स्थितमिदं
प्रदीपैरारार्तिं जलधितनयाश्लिष्ट रचये ॥ ७ ॥
विजातीयैः पुष्पैरतिसुरभिभिर्बिल्वतुलसी-
युतैश्चेमं पुष्पाञ्जलिमजित ते मूर्ध्नि निदधे ।
तव प्रादक्षिण्यक्रमणमघविद्ध्वंसि रचितं
चतुर्वारं विष्णो जनिपथगतिश्रान्तिद विभो(श्रान्तविदुषाम्) ॥ ८ ॥
नमस्कारोऽष्टाङ्गस्सकलदुरितध्वंसनपटुः
कृतं नृत्यं गीतं स्तुतिरपि रमाकान्त सततम्(तत इयम्) ।
तव प्रीत्यै भूयादहमपि च दासस्तव विभो
कृतं छिद्रं पूर्णं कुरु कुरु नमस्तेऽस्तु भगवन् ॥ ९ ॥
सदा सेव्यः कृष्णस्सजलघननीलः करतले
दधानो दध्यन्नं तदनु नवनीतं मुरलिकाम् ।
कदाचित् कान्तानां कुचकलशपत्रालिरचना-
समासक्तः स्निग्द्धैस्सह शिशुविहारं विरचयन् ॥ १० ॥
मणिकर्णीच्छया जातमिदं मानसपूजनम् ।
यः कुर्वीतोषसि प्राज्ञः तस्य कृष्णः प्रसीदति ॥ ११ ॥

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