Maa Katyayani Vrat Katha 2025 : नवरात्रि में छठवें दिन की जाती है माँ कात्यायनी माता व्रत की कथा की पूजा में, पढ़ें पावन ये कथा

Maa Katyayani Vrat Katha 2025 : नवरात्रि में छठवें दिन की जाती है माँ कात्यायनी माता व्रत की कथा की पूजा में, पढ़ें पावन ये कथा माँ कात्यायनी जी के बारे में बताने जा रहे हैं, यहां हम आपको माता कात्यायनी देवी का स्वरूप और मां कात्यायनी कथा की विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।

Maa Katyayani Vrat Katha 2025
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माता कात्यायनी देवी का स्वरूप

दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं इनका वाहन सिंह हैं देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया।

इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया उनकी कोई संतान नहीं थी मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।

माँ कात्यायनी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में ही हुआ था मां का लालन पोषण कात्यायन ऋषि ने ही किया था पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।

मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया था इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।

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