Navarna Mantra Sadhana Vidhi : नवार्ण मंत्र साधना विधि कैसे करें, यहां पर नवार्ण मंत्र प्रयोग के नियम के बारे में जानें

Navarna Mantra Sadhana Vidhi
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Navarna Mantra Sadhana Vidhi : नवार्ण मंत्र साधना विधि कैसे करें, यहां पर नवार्ण मंत्र प्रयोग के नियम के बारे में जानें माता दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों वाले इस बीज महामंत्र में देवी दुर्गा माँ की नौ शक्तियां समायी हुई है। और इस नवार्ण मंत्र से नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की भी शक्ति है।

केवल नवार्ण मंत्र से आपको सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है, और भगवती माँ दुर्गा जी का पूर्ण आशीर्वाद के साथ उनके तीनों स्वरूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली को प्रसन्न किया जा सकता हैं। हमारे द्वारा बताये जा रहे नवार्ण मंत्र साधना विधि को जानकर आप भी नवार्ण मंत्र साधना पूरी कर सकते हैं।

नवार्ण मंत्र साधना Navarna Mantra Sadhana

|| नवार्ण मंत्र ||

||  “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” ||

नवार्ण मंत्र का अर्थ || Navarna Mantra Ka Arth

नवार्ण मंत्र को हर कोई जानता हैं पर क्या आपको नवार्ण मंत्र के नौ अक्षर के बारे में भी जानते हैं हो क्या? इन्ही नौ अक्षरों में वाले नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा माँ की नौ शक्तियां समायी हुई है। साथ ही नवार्ण मंत्र का सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है।

ऐं : सरस्वती का बीज मन्त्र है। 

ह्रीं : महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है। 

क्लीं : महाकाली का बीज मन्त्र है।

नवार्ण मंत्र साधना के प्रथम बीज मंत्र “ऐं” से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “सूर्य ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज मंत्र “ह्रीं” से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “चन्द्र ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र साधना के तृतीय बीज मंत्र “क्लीं” से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “मंगल ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज मंत्र “चा” से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “बुध ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र साधना के पंचम बीज मंत्र “मुं” से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “बृहस्पति ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज मंत्र  “डा” से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “शुक्र ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र साधना के सप्तम बीज मंत्र “यै” से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “शनि ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज मंत्र “वि” से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “राहु ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

नवार्ण मंत्र साधना के नवम बीज मंत्र “चै” से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है,  इस बीज मंत्र से “केतु ग्रह” को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।

Navarna Mantra Sadhana के नियम

१. शक्ति साधना के महत्त्वपूर्ण मंत्रों और स्तोत्रों में इस नवार्ण-मंत्र का प्रमुख स्थान माना जाता हैं।

२. अकेले नवार्ण मंत्र साधना से माता दुर्गा जी सहित उनके तीनों स्वरूपों महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली को प्रसन्न करके उनके दर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है।

३. नवार्ण मंत्र साधना को पूर्णता रूप से सिद्ध करके मोक्ष प्राप्त की जा सकती है।

४. नवार्ण मंत्र साधना के माध्यम से साधक अपनी कुण्डलिनी चेतना को जाग्रत् कर सकता है।

५. इस नवार्ण मंत्र साधना का जाप स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े कोई भी कर सकते हैं।

६. नवार्ण-मंत्र  का जाप माला के द्वारा या बिना माला के भी किया जा सकता है, दोनों का फल बराबर मिलता है।

७. नवार्ण मंत्र साधना का जाप रुद्राक्ष, स्फटिक, मूंगा, कमलगट्टे, हकीक या मोती की माला से किया जा सकता है। मगर रुद्राक्ष व स्फटिक मिश्रित माला से जाप करना ज्यादा उपयुक्त होता है या कमलगट्टे, स्फटिक व मूंगे की बनी माला भी प्रभावक होती है।

८. नवार्ण मंत्र साधना की जप संख्या सवा लाख है अर्थात नवार्ण-मंत्र का जप कम से कम सवा लाख बार करना चाहिए और द्वितीय पुरश्चरण चौबीस लाख जप का है।

९. कलियुग में समय की कमी से साधक नवरात्रों में प्रतिदिन एक / तीन / नौ / अट्ठारह / सताईस/ चौअन/ एक सौ आठ माला कर सकते हैं।

१०. साधक नवरात्रि के पहले दिन जो संकल्प लेता है उसी अनुसार जप करना चाहिए। उदाहरण : यदि आपने संकल्प लिया कि मैं रोजाना माता के नवार्ण मंत्र की नौ माला का जप करूँगा तो आपको पूरे नवरात्र रोजाना नौ माला का ही जाप करना होगा आप किसी दिन इसको बढ़ा या घटा नहीं सकते हैं।

११.नवार्ण मंत्र साधना का जाप करने का स्थान एकांत वाला होना चाहिए, या जहाँ आपने माँ का कलश स्थापना हुई है और जहाँ अखंड ज्योत जल रही है वहां जप करना चाहिए।

१२. नवार्ण मंत्र साधना का जाप करने वाला साधक शारीरिक शुद्धि के साथ साधना काल में मानसिक शुद्धि का भी ध्यान रखना चाहिए। जैसे की:

  • इस साधना में साधक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • उपवास रखें।
  • साधना पूर्ण होने तक साधक शांत रहे।
  • किसी विवाद में ना पड़ें।
  • मिथ्या ना बोलें।
  • साधना में साधक लाल वस्त्र और आसान का प्रयोग करें।
  • जप के दौरान एक दीप जलता रहना चाहिए।
  • साधक नवार्ण मंत्र साधना मंत्र जप के दौरान मोबाइल अपने से दूर रखें।
  • जप के दौरान आपको कोई न टोके।

१३. नवमी वाले दिन नवार्ण मंत्र  का दशांश हवन अवश्य करना चाहिए।

१४. नवार्ण मंत्र साधना के बाद कन्या-पूजन अवश्य करना चाहिए।

१५.नवार्ण-मंत्र का जाप करते समय माता दुर्गा के किसी भी स्वरूप का चिन्तन-पूजन किया जा सकता है। साथ ही माता सरस्वती, माता लक्ष्मी व माता काली के स्वरूपों का चिंतन भी किया जा सकता है व उनकी छवि का पूजन किया जा सकता है।

१६.यदि आप किसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए नवार्ण मंत्र साधना में नवार्ण मंत्र को पूर्ण लगन से सवा लाख मंत्र का जाप करके, अनुष्ठान के रूप में किया जाये, तो तत्काल सफलता प्राप्त होती है।

१७ . नवरात्र बाद भी नवार्ण-मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप किया जाय, तो माता भगवती की विशेष कृपा बनी रहती है।

नोट : नवार्ण मंत्र साधना में मंत्र के 9 लाख जप करने व उसी अनुसार हवन, तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोज, हवन से माँ दुर्गा के साक्षात दर्शन संभव होते हैं। पूर्ण सिद्धि के लिए 108 माला 90 दिन करना उचित माना गया है।

Navarna Mantra Sadhana करने की विधि

नवार्ण मंत्र: “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”

विनियोग: ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि-वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे (यदि श्रीदुर्गा का पाठ कर रहे हो तो आगे लिखा हुआ भी उच्चारित करें) श्री दुर्गासप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास : 

ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषिभ्यो नमः शिरसि

गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्देभ्यो नमः मुखे

श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताभ्यो नमः हृदिः

ऐं बीज सहिताया रक्त-दन्तिका-दुर्गायै भ्रामरी देवताभ्यो नमः लिङ्गे (मनसा)

ह्रीं शक्ति सहितायै नन्दा-शाकम्भरी-भीमा देवताभ्यो नमः नाभौ

क्लीं कीलक सहितायै अग्नि-वायु-सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः गुह्ये

ऋग्-यजुः-साम स्वरुपिणी श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताभ्यो नमः पादौ

श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – Navarna Mantra पढ़कर शुद्धि करें ।

षडङ्ग-न्यास

कर-न्यास :

ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः

ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः

ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम्

ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्

अंग-न्यास :

ॐ ऐं हृदयाय नमः

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा

ॐ क्लीं शिखायै वषट्

ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्

ॐ विच्चे नेत्र-त्रयाय वौषट्

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्

अक्षर-न्यास : 

ॐ ऐं नमः शिखायां, ॐ ह्रीं नमः दक्षिण-नेत्रे, ॐ क्लीं नमः वाम-नेत्रे, ॐ चां नमः दक्षिण-कर्णे, ॐ मुं नमः वाम-कर्णे, ॐ डां नमः दक्षिण-नासा-पुटे, ॐ यैं नमः वाम-नासा-पुटे, ॐ विं नमः मुखे, ॐ च्चें नमः गुह्ये ।

व्यापक-न्यास : 

मूल मंत्र से चार बार सम्मुख दो-दो बार दोनों कुक्षि की ओर कुल आठ बार (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें ।

दिङ्ग-न्यास : 

ॐ ऐं प्राच्यै नमः,ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः, ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः, ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः, ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लीं वायव्यै नमः, ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः, ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।

। ध्यानम् ।

ॐ खड्गं चक्रगदेषुचाप परिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः,

शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।

नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकाम्,

यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।। १।।

ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां,

दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।

शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां

सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। २।।

घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं

हस्ताब्जैर्दशतीं घनान्तविलसच्छितांशुतुल्य प्रभाम् ।।

गौरीदेहसमुद्भुवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र

सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।। ३।।

माला-पूजन :

माला स्फटिक की हो ,लाल मुंगे की या रुद्राक्ष की माला के गन्धाक्षत करें तथा “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मंत्र से पूजा करके प्रार्थना करें :

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरुपिणि ।

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदाभव ।।

ॐ अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।

जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।

इसके बाद “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का 1,25.000 बार जप करें ।

जप दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज करावें।

। पाठ-समर्पण ।

ॐ गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्-कृतं जपम् ।

सिद्धिर्मे भवतु देवि ! त्वत्-प्रसादान्महेश्वरि !

उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें।

नवार्ण मंत्र साधना की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जप से होती है।

परंतु कोई साधक नवार्ण मंत्र साधना न कर पाये तो नित्य 1, 3, 5, 7, 11 या 21 माला मंत्र जप करना उत्तम होगा।

इस विधि से नवार्ण मंत्र साधना करने से सम्पूर्ण इच्छायें पूर्ण होती है, समस्त दुख समाप्त होते है और धन का आगमन भी सहज रूप से होता है।

यदि नवार्ण मंत्र साधना सिद्ध नहीं हो रहा हो तो “ऐं”,“ह्रीं”,“क्लीं” तथा “चामुण्डायै विच्चे” के पृथक पृथक सवा लाख जप करें फिर नवार्ण का पुनश्चरण करें।

। ॐ नमश्चंडिकाये ।

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