Rishi Panchami Vrat Katha in Hindi: ऋषि पंचमी व्रत कथा 2025: जानें पूरी कहानी और महत्व हम यहां आपको ऋषि पंचमी कब मनाई जाती हैं, और ऋषि पंचमी मनाने के पीछे की व्रत कथा के बारे में यहां बताने जा रहे हैं नीचे बताई जा रही ऋषि पंचमी व्रत कथा का पाठ आपको ऋषि पंचमी के दिन करना चाहिए इससे सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
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Rishi Panchami Vrat 2025 Date: ऋषि पंचमी व्रत कब है 2025
इस साल 2025 में ऋषि पंचमी का पर्व 28 अगस्त, वार गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।
ऋषि पंचमी व्रत का महत्व | Rishi Panchami Vrat Ka Mahtva
यह तो आप सब जानते है की हिन्दू धर्म में पवित्रता का बहुत अधिक महत्व रखा जाता है। हिन्दू धर्मानुसार महिलाये मासिक धर्म के समय वे सबसे अधिक अपवित्र मानी जाती हैं। ऐसे में उनके ना चाहते हुए भी जानें व् अनजाने में कही ग़लतियाँ हो जाती है। उन सब गलतियों व दोषों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का उपवास रखा जाता है। Rishi Panchami Vrat Katha
संपूर्ण ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha Full Story & Vidhi
एक गांव में गरीब माँ और बेटे रहते थे। भाद्रपद महीने में जब ऋषि पंचमी आई तो बेटा अपनी माँ से बोला ” माँ , मैं अपनी बहन के घर राखी बंधवाने जाना चाहता हूँ। माँ ने कहा इस गरीबी में बहन के घर क्या लेकर जायेगा। बेटा बोला लकड़ी बेचने से जो भी पैसे मिलेंगे, वही लेकर चला जाऊँगा और वह अपनी बहन के घर पहुँच गया।
उस समय बहन सूत कात रही थी सूत का धागा बार बार टूट रहा था। बहन उसे जोड़ने में व्यस्त थी। देख ही नहीं पाई कि भाई आया है। भाई ने सोचा अमीर बहन के मन में गरीब भाई के प्रति प्रेम नही है और वह वापस जाने लगा इतने में बहन का सूत का तार जुड़ गया उसने जैसे ही नज़र उठाई तो देखा भाई जा रहा है। Rishi Panchami Vrat Katha
वह दौड़ कर गयी और भाई से बोली – भैया में तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी सूत बार बार टूट रहा था इसलिए बोल नहीं पाई। भाई को बड़े प्यार से बैठाकर राखी बाँधी। भाई ने अपनी बहन को सुन्दर भेंट दी। बहन ख़ुशी से पागल हो रही थी। उसने पड़ोसन से सलाह की और पूछा मेरा प्यारा भाई आया है, उसके लिए क्या खाना बनाऊ। पड़ोसन ने कहा घी में चावल बना लेना और तेल का छौक लगा देना।
बहन भोली थी पड़ोसन ने जैसा कहा वैसा ही किया। दो घंटे हो गए भाई ने कहा भूख लगी है बहन ने भाई को पड़ोसन वाली बात बताई और कहा चावल अभी बने नहीं हैं। भाई ने समझाया बहन, चावल घी में नहीं बनते। दूध और चावल की खीर बना लो। बहन ने खीर बनाई और सब ने भोजन किया। Rishi Panchami Vrat Katha
सुबह अँधेरे भाई को जाना था। बहन ने सुबह जल्दी उठ कर गेँहू पीसे और लडडू बनाकर भाई के साथ डाल दिए । थोड़ी देर बाद बच्चे उठे और बोले हमें भी लडडू चाहिए। बच्चो को देने के लिए लड्डू तोडा तो उसमे से साँप के छोटे छोटे टुकड़े निकले। उसे भाई की फ़िक्र होने लगी। वो तुरंत दौड़ी। बहुत दूर जाने के बाद भाई दिखा तो भाई को आवाज लगाई। Rishi Panchami Vrat Katha
भाई सोचने लगा ये मेरे पीछे दौड़ कर क्यों आई है। उसने ऐसे इतनी दूर दौड़ कर आने का कारण पूछा।
बहन बोली में तेरी जान बचाने आई हूँ तुझे जो लडडू दिए थे उसमें भूल से साँप के टुकड़े आ गए है। तुझे यही कहने आई थी । भाई बोला बहन मैं एक पेड़ पर पोटली टांक कर नीचे आराम कर रहा था , तब कोई चोर मेरे लडडू चुरा कर ले गए। संयोग से लडडू चोर पास ही में थे। वे लडडू खाने वाले ही लेकिन उनकी बात सुन कर रुक गए। बहन के पास आकर बोले तुमने हमारी जान बचाई है। आज से तुम हमारी धर्म बहन हो। लडडू वही खड्डा खोदकर गाढ़ दिए। बहन भाई को घर ले आई और तीसरे दिन सीख देकर भेजा।
इसलिए भाई को राखी के दिन रात को नहीं रोकना चाहिए और जाते समय खाने का कुछ सामान साथ नहीं बांधना चाहिए। खोटी की खरी। अधूरी की पूरी। Rishi Panchami Vrat Katha
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जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति दिलाएगी यह ऋषि पंचमी व्रत कथा, जानें पूरी कहानी | Rishi Panchami Katha
एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे। वे धर्म पालन में अग्रणी थे। उनकी दो संताने थी एक पुत्र एवं दूसरी पुत्री. दोनों ब्राहमण दम्पति ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे कुल में किया।
लेकिन कुछ वक्त बाद ही दामाद की मृत्यु हो गई। वैधव्य व्रत का पालन करने हेतु बेटी नदी किनारे एक कुटियाँ में वास करने लगी. कुछ समय बाद बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे। Rishi Panchami Vrat Katha
उसकी ऐसी दशा देख ब्राह्मणी ने ब्राहमण से इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने ध्यान लगा कर अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा जिसमे उसकी बेटी ने माहवारी के समय बर्तनों का स्पर्श किया और वर्तमान जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए उसके जीवन में सौभाग्य नहीं हैं. कारण जानने के बाद ब्राह्मण की पुत्री ने विधि विधान के साथ व्रत किया. उसके प्रताप से उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई। Rishi Panchami Vrat Katha

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