Shami Puja Stotram Lyrics in Hindi – Dussehra Prayer, Path & Significance | शमी पूजा स्तोत्र (PDF) पाठ और महत्व स्कंद पुराण के अनुसार यदि जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी तिथि के दिन किया जाता हैं, यंहा हम आपको Shami Puja Stotram के बारे में बताने जा रहे हैं। शमी पूजा स्तोत्र का पाठ शमी की पूजा के समय किया जाता हैं।
शमी पूजा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति अपने शत्रुओं से विजय पाता हैं। इस शमी पूजा स्तोत्र का नित्य पाठ करने से शनि देव की कृपा आपके ऊपर बनी रहती हैं। Free Upay.in द्वारा बताये जा रहे शमी पूजा स्तोत्र (Shami Puja Stotram) को करके आप भी विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करके अपनी समस्त मनोकामना पूरी करा सकते हैं।
पाप और शत्रुओं का नाश करने के लिए पढ़ें शमी पूजा का यह शक्तिशाली स्तोत्र | Shami Stotram (Shami Puja Stotram) PDF Download
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विजय का वरदान देगा यह शमी स्तोत्र, पांडवों ने भी किया था इसका पाठ | Shami Puja Stotram Lyrics in Sanskrit – Vijayadashami Shami Tree Prayer
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अपराजिते नमस्तेऽस्तु, नमस्ते विजये जये |
जगन्मातः सुरेशानि कुण्डलद्योतितानने || १ ||
त्वं चापराजिते देवि शमीवृक्षस्थिते जये |
राज्यं मे देहि विश्वेशि शत्रूणां च पराजयम् || २ ||
अमङ्गलानां शमनीं, दुःकृतस्य च शमनीम् |
दुःस्वप्नशमनीं धन्यां, प्रपद्येऽहं शमीं शमाम् || ३ ||
शमी शमयते रोगान्, शमी शमयते रिपून् |
शमी शमयते पापं, शमी सर्वार्थसाधिनी || ४ ||
अर्जुनस्य धनुर्धात्री,रामस्य शोकनाशिनी |
लक्ष्मणप्राणदात्री च, सीताशोकशमङ्करी || ५ ||
अपराजिते नमस्तेऽस्तु, जयदे कामदायिनी |
यात्रामहं करिष्यामि, सिद्धि सर्वत्र मे कुरु || ६ ||
मन्त्रैर्वेदमयैश्चैव, पूज्येच्च शमीस्थिताम् |
अपराजितां भद्ररूपां, विजयार्थप्रदां शिवम् || ७ ||
क्रोमेणेन्द्रस्य ककुभिः, विन्यसेत् तु पदं क्रमात् |
रिपोः प्रतिकृतिं कृत्वा, पांशुना तलरूपिणीम् || ८ ||
शरेण शरपुड्खेंण, बिद्धेद् हृदयमर्मणि |
दिशां विजयमन्त्राश्च, असिरुपा द्विजातिभिः || ९ ||
पठनीयास्ततो गेहं, गच्छेच्चैव पुरोधसा |
मङ्गल्यमभिषेकं च, गुणप्राशनमेव च || १० ||
स्वस्तिवाच्या द्विजाश्चैव, बन्दीभ्योऽभयदक्षिणां |
देयाधिक्यं च रजतं, वस्त्रादिनवभूषणम् || ११ ||
परिधयं स्वयं चैय, पत्नीभ्यो देयमेव च |
पुत्रादिभ्यो स्त्रुषादिभ्यो, मन्त्रीभ्यो देयमेव च || १२ ||
अदेयमपि तत्काले, देयं श्रद्धा |
सम्भाव्य पौरान् भृत्यांश्च, तेषामुत्सर्जनं ततः || १३ ||
ततः पुरोधसा साकं, स्वयं गच्छेच्छमीं पुनः |
वामदक्षिण पार्श्वेभ्यो, गृहीत्वा मृत्तिकां ततः || १४ ||
श्रीधरं च हिरण्यं च, पट्ट कूलं समर्पयेत् |
गुरुं सम्पूज्य सस्त्रीकं, ततो गच्छेद् गृहं प्रति || १५ ||
|| अस्तु ||
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