दत्तात्रेय सुप्रभातम् (PDF) लिरिक्स, अर्थ और पाठ विधि Shri Dattatreya Suprabhatam Lyrics in Sanskrit & Hindi श्री दत्तात्रेय सुप्रभातम् श्री दत्तात्रेय जी को समर्पित हैं। श्री दत्तात्रेय जी हिंदू धर्म में भगवान श्री दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकरूप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। यह Sri Dattatreya Suprabhatam श्री वासुदेवानन्द सरस्वती जी द्वारा रचियत हैं। Sri Dattatreya Suprabhatam का नियमित पाठ करने से श्री दत्तात्रेय जी को ख़ुश किया जा सकता हैं। श्री दत्तात्रेय सुप्रभातम् आदि के बारे में बताने जा रहे हैं।
श्री दत्तात्रेय सुप्रभातम् (Lyrics) | Lord Dattatreya Suprabhatam PDF Download: Powerful Morning Stotra for Devotees
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श्री दत्तात्रेय सुप्रभातम् (PDF Download) | Shri Datta Suprabhatam Lyrics PDF: Morning Prayer Lyrics, Meaning & Benefits
श्री दत्तात्रेय सुप्रभातम् | Sri Dattatreya Suprabhatam Lyrics
नित्यो हि यस्य महिमा न हि मानमेति स त्वं महेश भगवन् मघवन्मुखेड्य।
उत्थिष्ठ तिष्ठदमृतैरमृतैरिवोक्तैः गीतागमैश्च पुरुधा पुरुधामशालिन् ॥१॥
भक्तेषु जागृहि मुदाहिमुदारभावं तल्पं विधाय सविशेष विशेषहेतो।
यः शेष एष सकलस्सकलस्वगीतैः त्वं जागृहि शृतपदे तपते नमस्ते ॥२॥
दृष्ट्वा जनान् विविधकष्टवशान् दयालु-स्त्र्यात्मा बभूव सकलार्तिहरोऽत्र दत्तः।
अत्रेर्मुनेस्सुतपसोऽपि फलं च दातुं बुध्यस्व स त्वमिह यन्महिमानियत्तः॥३॥
आयात्यशेषविनुतोऽप्यवगाहनाय दत्तोऽधुनेति सुरसिन्धुरपेक्षते त्वां।
क्षेत्रे तथैव गुरुसंज्ञक एत्य सिद्धाः तस्थुस्तवागमनदेश इनोदयात्प्राक्॥४॥
सान्ध्यामुपासितुमजोऽप्यधुना गमिष्य- त्याकाङ्क्षते कृतिजनः प्रतिवीक्षते त्वां।
कृष्णातटेऽपि नरसिंह सुवाटिकायां सारार्तिकः कृतिजनः प्रतिवीक्षते त्वां ॥५॥
गान्धर्वसंज्ञकपुरेऽपि सुभाविकास्ते ध्यानार्थमत्र भगवान् समुपैष्यतीति।
मत्वा स्तुराचरित संनियताप्लवाद्याः उत्थिष्ठ देव भगवन् नत एव शीघ्रम्॥६॥
पुत्री दिवः खगगणान् सुचिरं प्रसुप्तान् उत्थापयत्यरुणका अधिरुह्य तूषा ।
काषायवस्त्रमपिधानमपावृणोद्यन् तार्क्ष्याग्रजोऽयमवलोकय तं पुरस्तात् ॥७॥
शाटीनिभाभ्रपटलानि तंवेन्द्रकाष्ठा- भागं यतीन्द्र रुरुदुर्गरुडाग्रजोऽतः।
अस्माभिरीश विदितो ह्युदितोऽयमेवं चन्द्रोऽपि ते मुखरुचिं चिरगां जहाति॥८॥
द्वारेऽर्जुनस्तव तिष्ठति कार्तवीर्यः प्रह्लाद एष यदुरेष मदालसाजः।
त्वां द्र्ष्टुकाम इतरे मुनयोऽपि चाहं उत्तिष्ठ दर्शय निजं सुमुखं प्रसीद॥९॥
एवं प्रबुद्ध इव संस्तवनादभूत् स मालां कमण्डलुमथो डमरुं त्रिशूलम्।
चक्रं च शङ्खमुपरि स्वकररैर्दधानो नित्यं स मामवतु भावित वासुदेवः॥१०॥
।। इति श्रीवासुदेवानन्द सरस्वती विरचितो दत्तप्रबोधः संपूर्णः ।।

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