Varaha Jayanti 2025 Puja Vidhi: Step-by-Step Guide, Katha & Muhurat: वराह जयंती 2025 पूजा विधि: संपूर्ण सामग्री लिस्ट, मंत्र और कथा हम यंहा आपको भगवान श्री विष्णु जी के वराह अवतार जयंती के दिन की जाने वाली पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। हमारी इस पोस्ट के माध्यम से आपको वराह देव जी की पूजा कैसे करे इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
वराह जयंती पूजा विधि || How to do Varaha Jayanti Puja at Home (2025): Full Vidhi & Mantra
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The Shastriya Vidhi for Varaha Jayanti Puja 2025 (as per Panchang)
वराह जयंती 2025: पंचांग के अनुसार संपूर्ण पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
इस साल 2025 में वराह जयंती व्रत (Varaha Jayanti Puja) 25 अगस्त, वार सोमवार के दिन बनाई जाएगी।
Varaha Jayanti 2025 Puja Muhurat: Exact Auspicious Timings & Date
वराह जयंती 2025 पूजा मुहूर्त: जानें सही तारीख और शुभ समय
सुबह 06:03 बजे से सुबह 07:39 बजे तक,
सुबह 09:16 से सुबह 10:52 बजे तक,
दोपहर 02:05 से सांय 06:54 बजे तक।
वराह जयंती पूजा कब और क्यों की जाती हैं? विधि
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की तृतीय तिथि के दिन वराह जयंती व्रत का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो भगवान श्री विष्णु जी ने अनेकों अवतार लिए है उन्हीं में से भगवान श्री विष्णु जी ने “वराह अवतार” अवतार लिया है। जो की इस दिन को वराह अवतार जयंती के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी के इसी दिन वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया था।
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Simple Varaha Jayanti Puja Vidhi for Home (Step-by-Step Instructions): वराह जयंती पूजा की सरल विधि (2025): घर पर पूजन कैसे करें?
जो भी जातक वराह जयंती व्रत को रखते हैं उन्हें व्रत तिथि के दिन जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर साफ़ कपडे पहनकर संकल्प करके एक कलश में भगवान वराह की सोने की प्रतिमा या अन्य धातु की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। भगवान वराह की मूर्ति की स्थापना करने के पश्चात विधि-विधान सहित षोडशोपचार से भगवान वराह की पूजा करनी चाहिए।
पूरे दिन वराह जयंती व्रत व उपवास रखकर रात्रि में जागरण करके भगवान श्री विष्णु के अवतारों की कथा- कहानी सुननी चाहिए। और वराह देव जी के मन्त्र का जाप करे और उनके भजन सुनने चाहिए। और अगले दिन कलश में स्थित वराह भगवान की पूजा करने के बाद प्रतिमा को बाहर निकालकर कलश को विसर्जन करना चाहिए। और विसर्जन के पश्चात उस स्वर्ण प्रतिमा या अन्य धातु की प्रतिमा को किसी भी ब्राह्मण आचार्य को दान देना चाहिए।
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