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Sri Narasimha Ashtottara Satanama Stotram : श्री नृसिंह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

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Sri Narasimha Ashtottara Satanama Stotram
Sri Narasimha Ashtottara Satanama Stotram

Sri Narasimha Ashtottara Satanama Stotram : श्री नृसिंह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् कहा जाता है की भगवान श्री विष्णु जी को दसावतार के नाम से भी जाना चाहता हैं। जिसमे से एक अवतार नृसिंह अवतार हैं। श्री नृसिंह अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से भगवान श्री विष्णु जी के श्री नृसिंह अवतार का आशीर्वाद बना रहता हैं। श्री नृसिंह शतनामावली स्तोत्रम आदि के बारे में बताने जा रहे हैं।

श्री नृसिंह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् Sri Narasimha Ashtottara Satanama Stotram

नरसिंहो नरो नारस्रष्टा नारायणो नवः ।

नवेतरो नरपतिर्नरात्मा नरचोदनः ॥ १॥

नखभिन्नस्वर्णशय्यो नखदंष्ट्राविभीषणः ।

नारभीतदिशानाशो नन्तव्यो नखरायुधः ॥ २॥

नादनिर्भिन्नपाद्माण्डो नयनाग्निहुतासुरः ।

नटत्केसरसञ्जातवातविक्षिप्तवारिदः ॥ ३॥

नलिनीशसहस्राभो नतब्रह्मादिदेवतः ।

नभोविश्वम्भराभ्यन्तर्व्यापिदुर्वीक्षविग्रहः ॥ ४॥

निश्श्वासवातसंरम्भ घूर्णमानपयोनिधिः ।

निर्दयाङ्घ्रियुगन्यासदलितक्ष्माहिमस्तकः ॥ ५॥

निजसंरम्भसन्त्रस्तब्रह्मरुद्रादिदेवतः ।

निर्दम्भभक्तिमद्रक्षोडिम्भनीतशमोदयः ॥ ६॥

नाकपालादिविनुतो नाकिलोककृतप्रियः ।

नाकिशत्रूदरान्त्रादिमालाभूषितकन्धरः ॥ ७॥

नाकेशासिकृतत्रासदंष्ट्राभाधूततामसः ।

नाकमर्त्यातलापूर्णनादनिश्शेषितद्विपः ॥ ८॥

नामविद्राविताशेषभूतरक्षःपिशाचकः ।

नामनिश्श्रेणिकारूढनिजलोकनिजव्रजः ॥ ९॥

नालीकनाभो नागारिवन्द्यो नागाधिराड्भुजः ।

नगेन्द्रधीरो नेत्रान्तस्ख्सलदग्निकणच्छटः ॥ १०॥

नारीदुरासदो नानालोकभीकरविग्रहः ।

निस्तारितात्मीयसन्थो निजैकज्ञेयवैभवः ॥ ११॥

निर्व्याजभक्तप्रह्लादपरिपालनतत्परः ।

निर्वाणदायी निर्व्याजभक्त्येकप्राप्यतत्पदः ॥ १२॥

निर्ह्रादमयनिर्घातदलितासुरराड्बलः ।

निजप्रतापमार्ताण्डखद्योतीकृतभास्करः ॥ १३॥

निरीक्षणक्षतज्योतिर्ग्रहतारोडुमण्डलः ।

निष्प्रपञ्चबृहद्भानुज्वालारुणनिरीक्षणः ॥ १४॥

नखाग्रलग्नारिवक्षस्स्रुतरक्तारुणाम्बरः ।

निश्शेषरौद्रनीरन्ध्रो नक्षत्राच्छादितक्षमः ॥ १५॥

निर्णिद्ररक्तोत्पलाक्षो निरमित्रो निराहवः ।

निराकुलीकृतसुरो निर्णिमेयो निरीश्वरः ॥ १६॥

निरुद्धदशदिग्भागो निरस्ताखिलकल्मषः ।

निगमाद्रिगुहामध्यनिर्णिद्राद्भुतकेसरी ॥ १७॥

निजानन्दाब्धिनिर्मग्नो निराकारो निरामयः ।

निरहङ्कारविबुधचित्तकानन गोचरः ॥ १८॥

नित्यो निष्कारणो नेता निरवद्यगुणोदधिः ।

निदानं निस्तमश्शक्तिर्नित्यतृप्तो निराश्रयः ॥ १९॥

निष्प्रपञ्चो निरालोको निखिलप्रीतिभासकः ।

निरूढज्ञानिसचिवो निजावनकृताकृतिः ॥ २०॥

निखिलायुधनिर्भातभुजानीकशताद्भुतः ।

निशितासिज्ज्वलज्जिह्वो निबद्धभृकुटीमुखः ॥ २१॥

नगेन्द्रकन्दरव्यात्तवक्त्रो नम्रेतरश्रुतिः ।

निशाकरकराङ्कूर गौरसारतनूरुहः ॥ २२॥

नाथहीनजनत्राणो नारदादिसमीडितः ।

नारान्तको नारचित्तिर्नाराज्ञेयो नरोत्तमः ॥ २३॥

नरात्मा नरलोकांशो नरनारायणो नभः ।

नतलोकपरित्राणनिष्णातो नयकोविदः ॥ २४॥

निगमागमशाखाग्र प्रवालचरणाम्बुजः ।

नित्यसिद्धो नित्यजयी नित्यपूज्यो निजप्रभः ॥ २५॥

निष्कृष्टवेदतात्पर्यभूमिर्निर्णीततत्त्वकः ।

नित्यानपायिलक्ष्मीको निश्श्रेयसमयाकृतिः ॥ २६॥

निगमश्रीमहामालो निर्दग्धत्रिपुरप्रियः ।

निर्मुक्तशेषाहियशा निर्द्वन्द्वो निष्कलो नरी ॥ २७॥

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