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Katyayani Stotra: नवरात्रि के छठवें दिन जरूर करें इस माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ, मिलेगा संपूर्ण रोग से मुक्ति

Katyayani Stotra: नवरात्रि के छठवें दिन जरूर करें इस माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ, मिलेगा संपूर्ण रोग से मुक्ति मां दुर्गा अपने छठे स्वरूप में कात्यायनी के नाम से जानी जाती है चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभ दधादेवी दानवघातिनी॥ भगवती दुर्गा के छठेंरूप का नाम कात्यायनी है महíष कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।

Katyayani Stotra
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Katyayani Stotra: नवरात्रि के छठवें दिन जरूर करें इस माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ, मिलेगा संपूर्ण रोग से मुक्ति इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है इनकी चार भुजाएं हैं माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रामें है तथा नीचे वाला वरमुद्रामें, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है इनका वाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी देवी स्तोत्र || Katyayani Stotra

!! ध्यान !!

वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥

स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।

वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥

पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।

मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।

प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।

कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

!! स्तोत्र !!

कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।

स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।

विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।

कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।

कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।

कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

Maa Katyayani Stotra के लाभ

विशेष : भगवती कात्यायनी का ध्यान, स्तोत्र और कवच के जाप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है इससे रोग, शोक, संताप, भय से मुक्ति मिलती है।

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